पीड़ा में आनंद

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पीड़ा इस शब्द से हम सभी का परिचय हैं। क्योंकि जिसमें चेतना है उसे पीड़ा की अनुभूति भी होगी। जैसे हंसना मुस्कुराना हमारे जीवित होने की निशानी है। वैसे ही पीड़ा का अनुभव करना भी हमें बताता है कि हमारे भीतर प्राणों का स्पंदन है। हम चाहे कितनी कोशिश कर लें पीड़ा से अछूते नहीं रह सकते हैं। अपने जीवन में हम कई बार और कई प्रकार की पीड़ाओं का अनुभव करते हैं। हम सभी का जीवन किसी ना किसी प्रकार की पीड़ा से घिरा हुआ है। पीड़ा से कोई बचा नहीं है।‌ हर व्यक्ति किसी न किसी तरह की पीड़ा से गुज़र रहा है। उस पीड़ा के कारण सही प्रकार से जीवन नहीं जी पा रहा है। जीवन तो जीने के लिए है। पीड़ा के बीच में जीना मुश्किल होता है। पीड़ा हर समय हमें अपने होने का एहसास कराती है‌। ऐसे में क्या हम सिर्फ पीड़ा के बारे में ही सोचें? ऐसा हुआ तो हम जीवन को कैसे जी पाएंगे?

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पीड़ा में आनंद - भूमिका

पीड़ा में आनंदभूमिकापीड़ा इस शब्द से हम सभी का परिचय हैं। क्योंकि जिसमें चेतना है उसे पीड़ा की अनुभूति होगी।जैसे हंसना मुस्कुराना हमारे जीवित होने की निशानी है। वैसे ही पीड़ा का अनुभव करना भी हमें बताता है कि हमारे भीतर प्राणों का स्पंदन है।हम चाहे कितनी कोशिश कर लें पीड़ा से अछूते नहीं रह सकते हैं। अपने जीवन में हम कई बार और कई प्रकार की पीड़ाओं का अनुभव करते हैं।हम सभी का जीवन किसी ना किसी प्रकार की पीड़ा से घिरा हुआ है। पीड़ा से कोई बचा नहीं है।‌ हर व्यक्ति किसी न किसी तरह की पीड़ा ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 1 - असली खुशी

असली खुशीमिस्टर डिसूज़ा घर में दाखिल हुए तो देखा कि उनकी पत्नी फिर से सारे खिलौने और कपड़े बिस्तर बिछाए बैठी थीं। वह अक्सर घंटों बैठी उन्हें ताकती रहती थीं।मिस्टर डिसूज़ा बॉलकनी में आकर बैठ गए। उन्होंने तो स्वयं को किसी प्रकार उस दुख से उबार लिया था किंतु उनकी पत्नी रोज़ के लिए यह संभव नही हो पा रहा था। यह सारे कपड़े और खिलौने उन्होंने अपने पोते पीटर के लिए खरीदे थे। बॉलकनी में बैठे हुए अतीत के कुछ पल चलचित्र की तरह उनके मन में चलने लगे।"डैड मुझे आस्ट्रेलिया के एक फाइव स्टार होटल से ऑफर ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 2 - सिपाही

सिपाहीजगतपाल बहुत उद्विग्न था। आज उसने ठीक से खाया भी नहीं था। वह अपनी खाट पर लेटा अपने खयालों डूबा था।कैसा समाज है ? बदलाव से इतना डरता है। क्या हर बदलाव बुरा है ? इतने सालों के इतिहास में ना जाने कितना कुछ बदला है। बदलाव तो प्रकृति का नियम है। पर जब भी समाज की व्यवस्था में कुछ बदला है तो पहले समाज में विरोध ज़रूर होता है।समाज इस मामले में अजगर की तरह होता है। जिस करवट लेट गया उसे ही सही मानता है। फिर कोई ज़रा भी इधर उधर करने का प्रयास करे तो ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 3 - बसंत बहार

बसंत बहारमालिनी ने कॅलबेल बजाई। वह बाहर गई थी। दस दिन बाद वह कल लौटकर आई थी। सरला ने खोला। उसने कहा,"नमस्ते दीदी। बहुत दिनों के बाद आईं।"मालिनी अंदर आकर सोफे पर बैठ गई। अपना हैंड बैग टेबल पर रख कर बोली,"हाँ घर जाना पड़ा। मम्मी की तबीयत ठीक नहीं थी।""अब कैसी हैं वो ?""ठीक हैं। तभी तो वापस आई हूँ।"सरिता ने उसे पानी लाकर दिया। पानी पीकर मालिनी ने पूछा,"मैम के क्या हाल हैं ?"सरिता ने उदास होकर कहा,"वैसी ही हैं। दिन भर गुमसुम सी बैठी रहती हैं। मैं जबरदस्ती करके कुछ खिला देती हूँ। वरना आजकल ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 4 - तुम्हारी मुस्कान

तुम्हारी मुस्कानअचला लगभग दौड़ती हुई लिफ्ट में दाखिल हुई। आज उसे देर हो गई थी। छुट्टी से कुछ देर ही बॉस ने एक ज़रूरी काम पकड़ा दिया। रोज़ के समय से एक घंटे बाद ऑफिस से निकल पाई। लोकल के लिए दस मिनट इंतज़ार करना पड़ा। वह डर रही थी कि उसके घर पहुँचने से पहले वह निकल ना जाए।लेकिन जिसका डर था वही हुआ। घर पहुँची तो सास ने बताया कि मनीष बस कुछ देर पहले ही निकल गया। अचला को अफसोस हुआ। उसने बैग सोफे पर डाला और खुद भी बैठ गई।कितना चाह रही थी वह कि ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 5 - सच्चा प्यार

सच्चा प्यारसुजित के फोन पर मैसेज बीप सुनाई पड़ी। वह मुस्कुराया। उसने मन ही मन सोचा। लगता है यह मुझ पर फिदा हो गई। उसने मैसेज पढ़ा।'ओके....कहाँ मिलना है ?"सुजित कुछ क्षणों तक सोचता रहा। उसके दिमाग में कई सारे विकल्प थे। चुनाव उसे करना था। कई अच्छे रेस्टोरेंट्स के बारे में सोचने के बाद उसने तय किया कि उसका स्टूडियो अपार्टमेंट सबसे सही जगह है। यहाँ ठीक से जान पहचान हो सकती है। यह खयाल आते ही वह एक बार फिर मुस्कुराया।उसने मैसेज के उत्तर में अपने अपार्टमेंट का पता भेज दिया। उस तरफ से कुछ ही क्षणों ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 6 - चींटी चढ़ी दीवार पर

चींटी चढ़ी दीवार परवंश और दीप्ति बीच पर पहुँचे तो दोनों को ही भूख लग रही थी। दीप्ति ने दिया।"चलो एक एक वड़ा पाव खाते हैं।"वंश दोनों के लिए वड़ा पाव ले आया। पास पड़ी बेंच पर बैठ कर दोनों खाने लगे। दोनों ही खामोश थे। दीप्ति वंश से आज उसका निर्णय सुनना चाहती थी। पर उस विषय को उठाए कैसे यही सोच रही थी।वंश भी जानता था कि दीप्ति वह विषय उठाएगी। पर अभी तक वह अनिर्णय की स्थिति में था। अभी उसके पास दीप्ति को देने के लिए कोई सीधा जवाब नहीं था। अगर वह ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 7 - शैली

शैलीआज वेलेंटाइन डे था। सब किसी न किसी के साथ प्यार के इस दिन को सेलिब्रेट कर रहे थे। के साथ इस दिन को मनाने वाला कोई नहीं था। कुछ देर पहले ही वह ऑफिस से लौटकर आया था। फ्रेश होकर वह अपने सरकारी बंगले के गार्डन में जाकर बैठ गया। उसके डोमेस्टिक हेल्प ने चाय की ट्रे लाकर उसके सामने रख दी। चाय बनाकर कप उसकी तरफ बढ़ा दिया।चाय पीते हुए वह अपने फोन पर फेसबुक देखने लगा। नोटीफिकेशंस में उसे एक ग्रुप में डाली गई एक पोस्ट के बारे में पता चला। वह उस पोस्ट पर ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 8 - तेरी मेरी दुनिया

तेरी मेरी दुनियाअनिकेत उस सीट को निहारे जा रहा था जहाँ सोनम बैठती थी। वह कल्पना कर रहा था सोनम अभी भी वहीं बैठी है। अपना काम करते हुए बार बार अपनी लट को पीछे कर रही है।"अब सीट को क्या घूरे जा रहे हो ? उसकी शादी हो गई। अब वह ऑफ़िस भी नहीं आएगी। जब कहना था तब कुछ बोल नहीं पाए।"पीछे से आकर उसके दोस्त राकेश ने उसे धौल मारते हुए कहा। राकेश सही कह रहा था। इतने दिनों से अनिकेत मन ही मन सोनम को चाहता रहा। पर कुछ कह नहीं पाया। जब भी उसने ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 9 - जीवनसाथी

जीवनसाथीनैना ने वॉशरूम में जाकर अपना मुंह धोया। आईने में अपना चेहरा देखा। उसकी आँखें सूजी हुई थीं। वह तक रोई थी। उसके दुख में ढांढस बंधाने वाला कोई नहीं था। इस वह समय अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुज़र रही थी। इस दौर में उसे किसी के सहारे की सख्त ज़रूरत थी। पर उसके आसपास उसे तसल्ली देने वाला कोई नहीं था।पिछले कई दिनों से उसकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। पर काम की व्यस्तता के कारण वह सही तरह से इलाज नहीं करा रही थी। पर एक दिन जब उसने अपने वक्ष पर ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 10 - शिवोहं

शिवोहंसुयश अपने लैपटॉप के सामने आँखें बंद किए बैठा अपने विचारों में मग्न था। तभी उसकी पत्नी विशाखा ने खा लो बाद में लिख लेना।""अभी नहीं....अभी नावेद खान को मेरी ज़रूरत है।""तो ठीक है। करो मदद अपने नावेद खान की। टीवी पर मेरी फेवरेट मूवी शुरू होने वाली है। अब खाना मूवी खत्म होने के बाद ही मिलेगा।"सुयश ने उसी तरह आँखे बंद किए हुए कहा,"ठीक है....यू गो एंड इंज्वॉय योर मूवी।"विशाखा जाते हुए रुक कर बोली,"सुयश अगर तुमने नावेद खान की जगह कोई महिला चरित्र रचा होता तो मैं कह सकती थी कि वो मेरी सौत है।"सुयश ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 11 - जीवनधारा

जीवनधाराजब सुभाष ने कैफे में प्रवेश किया तब शम्स और मयंक का ठहाका उनके कानों में पड़ा। उन्हें देखकर बोले,"आओ भाई सुभाष आज देर कर दी।"सुभाष ने बैठते हुए पूछा,"अभी तक रघु नहीं आया, वो तो हमेशा सबसे पहले आ जाता है।""हाँ हर बार सबसे पहले आता है और हमें देर से आने के लिए आँखें दिखाता है, आज आने दो उसे, सब मिलकर उसकी क्लास लेंगे।"मयंक की इस बात पर एक और संयुक्त ठहाका कैफे में गूंज उठा।तीनों मित्र रघु मेहता का इंतज़ार कर रहे थे। रघु ही थे जिन्होंने चारों मित्रों को फिर से एकजुट किया था। ...Read More

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पीड़ा में आनंद - भाग 12 - इंद्रधनुष

इंद्रधनुषएक छोटे से कमरे में बारह लड़कियां ठूंसी गई थीं। उनकी उम्र 15 से 20 वर्ष के बीच थी। में केवल एक छोटी सी खिड़की थी। इतने लोगों के कारण बहुत घुटन महसूस हो रही थी।पूनम खिड़की पर खड़ी थी। कुछ ही देर पहले बारिश रुकी थी। आसमान का जो टुकड़ा खिड़की से दिख रहा था उस पर इंद्रधनुष खिला था‌। उसे देख कर पूनम को अपने गांव की याद आ गई।सुदूर पहाड़ों पर बसा उसका गांव बहुत सुंदर था। दूर तक फैले मैदान, कल कल बहती नदी, पेड़ पौधे, पशु पक्षी सभी मनोहारी थे। वहाँ आज़ाद पंछी की ...Read More