Pida me Aanand - 16 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 16 - पराए बच्चे

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पीड़ा में आनंद - भाग 16 - पराए बच्चे


पराए बच्चे


दयाल बाबू की पत्नी सुनंदा बार बार दरवाज़े तक जाकर बाहर झांकती थीं। वह बेचैनी से अपने पति के लौटने की राह देख रही थीं। उनका दिल घबरा रहा था। इधर उनके पति दयाल बाबू को खुलेआम धमकी मिली थी। सुनंदा ने उन्हें समझाया था कि कम से कम कुछ दिनों के लिए शांत हो जाएं। पर दयाल बाबू ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में हंसकर टाल दिया।

"सिर्फ धमकी देना जानते हैं ये लोग। मैं इनकी धमकियों से डरकर चुप नहीं बैठूँगा। तुम फिक्र मत करो। सच की लड़ाई लड़ने वालों का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।"

सुनंदा जानती थीं कि यह सारी बातें उन्हें बहलाने के लिए हैं। उन्होंने ज़िद की। जाने से रोका पर दयाल बाबू माने नहीं। वह भी जो ठान लेते थे वह करके रहते थे। चालीस साल के वैवाहिक जीवन में यह बात सुनंदा अच्छी तरह समझ चुकी थीं। वह उन्हें जाने से रोक तो नहीं पाईं पर अब उनके सही सलामत घर लौटने की प्रार्थना कर रही थीं। 

दरवाज़े के बाहर कुछ हलचल सुनाई पड़ी। सुनंदा भागकर बाहर गईं तो जो देखा उसे देखकर रोने लगीं। दयाल बाबू घायल थे। उनके सर पर और हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी। एक अनजान आदमी उन्हें सहारा देकर रिक्शे से उतार रहा था। सुनंदा समझ गईं कि जिसका डर था वही हुआ। दयाल बाबू पर हमला हुआ है। वह चोटिल होकर घर आए हैं। उस अनजान आदमी ने सहारा देकर दयाल बाबू को अंदर पहुँचा दिया। सुनंदा भी उसके साथ अंदर आ गईं। उस आदमी ने कहा,

"इन्हें सड़क के किनारे घायल पड़े देखा। कुछ बदमाशों ने इनकी पिटाई की थी। मैंने डॉक्टर के पास ले जाकर मरहम पट्टी करा दी है। डॉक्टर का कहना है कि गंभीर चोट नहीं है।"

उस आदमी ने प्लास्टिक बैग पकड़ाते हुए कहा,

"इसमें दवाएं हैं। पर्चे पर लिखा है कब देनी हैं। आप देती रहिएगा। तीन दिन बाद डॉ. बेग को दिखा लीजिएगा। उनका नंबर और क्लीनिक का पता पर्चे में है।"

सुनंदा ने प्लास्टिक बैग हाथ में ले लिया। दयाल बाबू ने कहा,

"सुनंदा डॉक्टर की फीस और दवाओं पर बारह सौ खर्च हुए हैं। रिक्शे का भाड़ा भी इन्होंने दिया है। इन्हें पैसे दे दो।"

सुनंदा भीतर गईं और पैसे ले आईं। बारह सौ और रिक्शे का भाड़ा उस आदमी को देते हुए कहा,

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद। बैठिए आपके लिए चाय लेकर आती हूँ।"

"नहीं....अब मैं चलूँगा। किसी ज़रूरी काम से जा रहा था।"

वह आदमी चलने को हुआ तो दयाल बाबू बोले,

"भले आदमी अपना नाम तो बता दो।"

"अंसार अहमद...."

नाम बताकर उसने सलाम किया और निकल गया। उसके जाने के बाद दयाल बाबू ने कहा,

"बड़ा भला आदमी था। इसकी नज़र मुझ पर पड़ी तो भागकर मेरे पास आया। मुझे डॉक्टर के पास ले गया। यहाँ तक छोड़ गया।"

सुनंदा उनके चेहरे की तरफ देख रही थीं। अचानक ज़ोर ज़ोर से रोने लगीं। दयाल बाबू ने चुप कराते हुए कहा,

"क्यों रो रही हो ? सब ठीक है। मामूली चोटें हैं। दो एक दिन में ठीक हो जाएंगी।"

सुनंदा ने गुस्से से कहा,

"आपको मेरी कोई फिक्र नहीं है। इतना समझाया था पर माने नहीं। आज मामूली चोटें हैं। कल जान पर बन आई तो मैं क्या करूँगी। कभी सोचा है आपने।"

दयाल बाबू चुप रहे। सुनंदा ने कहा,

"क्यों जाते हैं उस बस्ती में नशे के खिलाफ प्रचार करने के लिए। नशे के व्यापारियों को अपना दुश्मन बना रहे हैं। बस्ती वाले भी आपको पसंद नहीं करते हैं।"

दयाल बाबू ने सुनंदा की तरफ देखकर कहा,

"जो भी हो इस डर से मैं चुप होकर नहीं बैठूँगा। वो लोग छोटे छोटे बच्चों को नशे का आदी बना रहे हैं।"

"ये बात तो सबको पता है। पर कोई आपकी तरह अपने आप को खतरे में नहीं डालता है। वैसे भी यह आपका काम नहीं है। जैसे दूसरे चुप हैं आप भी चुप रहिए।"

सुनंदा ने अपना फरमान सुनाकर गुस्से से दयाल बाबू को देखा। कुछ सोचने के बाद दयाल बाबू बोले,

"जो तुमने कहा वह कई बार मेरे दिमाग में भी आया। पर मैं चुप नहीं रह सकता हूँ। मुझे उन बच्चों में अपना अभय नज़र आता है। उसे तो सही राह पर नहीं ला सका‌। इन लोगों में से एक को भी सुधार सका तो मन का बोझ उतर जाएगा।"

अभय के ज़िक्र ने सुनंदा का गुस्सा शांत कर दिया था। अब उनके मन में एक दर्द था। वह उठकर अंदर चली गईं।

दयाल बाबू और सुनंदा के सूने जीवन का एकमात्र सहारा था उनका पोता अभय। उसके कारण ही दोनों अपने बेटे बहू की असमय मृत्यु के दुख को सहकर आगे बढ़ पाए थे। दोनों ने खुद को अभय की परवरिश में उलझा दिया था। उनकी ज़िंदगी का एक ही मकसद था। अपने अनाथ पोते को खुश रखना। इसके लिए उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते थे। 

अभय किशोरावस्था में पहुँचा तो उसके कदम बहक गए। अपने दादी बाबा से झूठ बोलकर वह इधर उधर घूमता रहता था‌। पढ़ने में मन नहीं लगाता था। ज़िद करके अपनी बात मनवाने की उसकी शुरू की आदत थी। दयाल बाबू और सुनंदा उसके दबाव में आ जाते थे। उसकी हर मांग पूरी करते थे। इसकी वजह से वह दिन पर दिन बिगड़ रहा था। उन दोनों के पैरों तले से ज़मीन तब खिसक गई जब उन्हें पता चला कि अभय ड्रग्स लेने लगा है। 

अभय के ड्रग्स लेने की बात पता चलने पर पति पत्नी ने सख्ती शुरू की‌। पर तब तक देर हो चुकी थी।‌ अभय नशे की गिरफ्त में था। ना मिलने पर तड़पता था‌। नशा छुड़वाने की कोशिश की पर कुछ हुआ नहीं। अभय दुनिया को छोड़कर चला गया। दोनों पति पत्नी इस आघात से दुख के सागर में डूब गए। उनकी ज़िंदगी बेमक़सद हो गई थी। दो साल तक दोनों इसी गम में डूबे जीते रहे।

कुछ महीनों पहले दयाल बाबू ने फिर घर से निकलना शुरू किया। कहते थे कि मन बहलाव के लिए घूमने जाता हूँ। सुनंदा भी उन्हें देखकर दुख से बाहर आने लगीं। सब ठीक था‌। लेकिन हफ्ते भर पहले दयाल बाबू और सुनंदा जब कहीं से लौट रहे थे तब दो लोगों ने रास्ते में उन्हें रोक लिया‌। उन लोगों ने दयाल बाबू को धमकी दी कि उनके रास्ते में ना आएं नहीं तो बहुत बुरा होगा। सुनंदा धमकी सुनकर डर गईं। घर आकर दयाल बाबू ने उन्हें सारी बात बताई।

दयाल बाबू घर से कुछ दूर एक बस्ती में जाते थे। वहाँ नशे के शिकार बच्चों को नशे से दूर रहने की हिदायत देते थे‌। यह बात नशे का धंधा करने वालों को अच्छी नहीं लगी थी। उन्होंने धमकी दी थी‌। दयाल बाबू के ना मानने पर आज उन पर हमला कर चोट भी पहुँचाई थी। 

सुनंदा भीतर बैठी अपने आप को शांत कर रही थीं। कुछ देर बाद जब मन कुछ हल्का हुआ तो उन्होंने सबसे पहले दवा के बैग से पर्चा निकाल कर चेक किया कि दवा कब कब देनी है। उसके बाद दयाल बाबू के खाने का इंतजाम करने लगीं।

खाने के बाद सुनंदा ने दयाल बाबू को दवाएं दीं। उसके बाद उनके पास बैठकर बोलीं,

"अब दर्द तो नहीं है ?"

दयाल बाबू ने कहा,

"अब उतना नहीं है। थोड़ा बहुत है। ठीक हो जाएगा।"

"आप आराम कीजिए...."

कहकर सुनंदा जाने लगीं तो दयाल‌ बाबू ने उन्हें बैठने के लिए कहा। सुनंदा बैठ गईं। दयाल बाबू ने कहा,

"तुम कह रही थी कि मुझे तुम्हारी फिक्र नहीं है। पर यह सच नहीं है। मुझे तुम्हारी बहुत फिक्र है। इसलिए मैंने सोचा कि तुम्हारी बात मानकर चुपचाप बैठ जाऊँ। पर जानती हो यह फैसला लेते ही मेरे मन में क्या आया ?"

सुनंदा ने सवालिया निगाहों से उनकी तरफ देखा। दयाल बाबू ने कहा,

"मेरे मन ने कहा कि मुझे अपनी ग़लती सुधारने का मौका मिल रहा था। पर मैं उससे पीछे हट रहा हूँ।"

दयाल बाबू चुप हो गए। सुनंदा सोच में पड़ गईं। दयाल बाबू ने आगे कहा,

"अभय के जाने के बाद हर पल मुझे यही लगता था कि मैं उसके लिए अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाया। हमारी ज़िम्मेदारी सिर्फ उसे खुश रखने की नहीं थी। उसे सही परवरिश देना हमारा काम था। जो हम नहीं कर पाए। खासकर मैं क्योंकि उसकी हर मांग पूरी करने में मैं ही आगे रहता था।"

दयाल बाबू ने रुककर सुनंदा की तरफ देखा। वह अभी भी सोच में थीं। दयाल बाबू ने आगे कहा,

"यह बात मुझे कचोटती थी इसलिए मैंने बाहर निकल कर मन बहलाना शुरू किया। उसी दौरान मुझे बस्ती के बारे में पता चला। लगा जैसे कि मुझे ईश्वर ने एक मौका दिया है। मैंने बस्ती में जाकर उन बच्चों को समझाना शुरू किया। कोशिश करता था कि उन्हें और उनके परिवार वालों को सही राह दिखाऊँ। मन को एक तसल्ली मिल रही थी। पर उन लोगों ने धमकी दी और आज यह सब कर दिया।"

सुनंदा ने कहा,

"मैं इसलिए ही तो मना कर रही हूँ। आज सिर्फ मारा है। कल जान से मार सकते हैं। वैसे भी यह सब आपके अकेले के बस का नहीं है। जो ज़िम्मेदार हैं आप बस उन तक बात पहुँचा दीजिए। आपका काम खत्म।"

"सुनंदा.... मैं ऐसा कर सकता हूँ। फिर चैन से जी नहीं पाऊँगा। वो पराए बच्चे हैं पर मुझे अपने से लगते हैं। मैंने देखा है। सब हालात के शिकार हैं। थोड़ी सी हमदर्दी और सही दिशा मिले तो अच्छे नागरिक बन सकते हैं।"

"मानती हूँ कि आपकी बात ठीक है। पर आज के समय में अच्छा काम करने वाले को ही लोग गलत ठहराते हैं। आप इन सब पचड़ों में मत पड़िए।"

दयाल बाबू ने कुछ देर सुनंदा के चेहरे को देखा। उसके बाद बोले,

"दूसरों की मदद करने वालों की कमी नहीं है। आज अंसार ने अनजान होते हुए भी मेरी मदद की। उसने तो नहीं सोचा कि मैं पचड़े में क्यों पड़ूँ।"

सुनंदा फिर सोच में पड़ गईं। दयाल बाबू ने कहा,

"तुम जो कहोगी मैं करूँगा। तुम सोच लो कि तुम्हें मन से टूटा हुआ पति चाहिए या लड़ते हुए मरने को तैयार।"

अपनी बात कहकर दयाल बाबू आराम करने लगे। सुनंदा उनकी बात पर विचार करने लगीं।

तीन दिन बाद डॉक्टर बेग को दिखाया। सब ठीक था। उन्होंने कुछ और दिन की दवाएं लिखकर आराम करने को कहा। एक हफ्ते में दयाल बाबू पूरी तरह ठीक हो गए। 

सुनंदा कुछ काम कर रही थीं। दयाल बाबू उनके सामने आकर खड़े हो गए। उन्होंने सुनंदा की तरफ प्रश्न भरी दृष्टि डाली। सुनंदा समझ गईं कि वह उनका फैसला जानना चाहते हैं। उन्होंने बहुत सोचा था। अपना फैसला सुनाते हुए कहा,

"इतने साल आपके साथ बिताकर इतना पता चल गया है कि आप पीछे हटने वाले नहीं हैं। आपने कहा था कि मैं चुन लूँ कि टूटे हुए मन वाला पति चाहिए या लड़ते हुए मरने को तैयार पति‌। आपको कुछ भी होगा तो मुझे बहुत दुख होगा। पर आप टूट जाएं यह तो बिल्कुल भी नहीं सह पाऊँगी।"

सुनंदा का जवाब सुनकर दयाल बाबू मुस्कुरा दिए। तैयार होकर वह निकल गए। सुनंदा उनके सही सलामत लौटने की प्रार्थना करने लगीं।