Pida me Aanand - 1 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 1 - असली खुशी

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पीड़ा में आनंद - भाग 1 - असली खुशी


 असली खुशी 


मिस्टर डिसूज़ा घर में दाखिल हुए तो देखा कि उनकी पत्नी फिर से सारे खिलौने और कपड़े बिस्तर पर बिछाए बैठी थीं। वह अक्सर घंटों बैठी उन्हें ताकती रहती थीं। 

मिस्टर डिसूज़ा बॉलकनी में आकर बैठ गए। उन्होंने तो स्वयं को किसी प्रकार उस दुख से उबार लिया था किंतु उनकी पत्नी रोज़ के लिए यह संभव नही हो पा रहा था। यह सारे कपड़े और खिलौने उन्होंने अपने पोते पीटर के लिए खरीदे थे। बॉलकनी में बैठे हुए अतीत के कुछ पल चलचित्र की तरह उनके मन में चलने लगे।

"डैड मुझे आस्ट्रेलिया के एक फाइव स्टार होटल से ऑफर मिला है। अच्छी तनख्वाह है। मैने वहाँ जाने का फैसला कर लिया है।" 

उनके बेटे जेम्स ने मिस्टर डिसूज़ा से कहा।

"पर बेटा यहाँ भी तुम्हें अच्छा पैसा मिल रहा है। फिर घर का आराम छोड़ कर क्यों विदेश जाना चाहते हो?" 

मिस्टर डिसूज़ा ने समझाने का प्रयास किया। जेम्स ने अपनी दलील दी,

"डैड आप तो जानते हैं कि मेरा सपना अपना रेस्टोरेंट खोलने का है। यहाँ से बहुत अधिक वेतन है वहाँ। मैं चाहता हूँ कि वहाँ कुछ साल रह कर पैसे बचा लूँ फिर यहाँ आकर अपना रेस्टोरेंट खोलूँगा।"

मिस्टर डिसूज़ा ने रास्ता सुझाया,

"वह तो अभी भी हो सकता है। मेरी सेविंग्स हैं। गोवा का अपना मकान बेंच देंगे। जो कम पड़ा उसके लिए लोन ले लेंगे।" 

"गोवा वाला बंगला हम हरगिज़ नही बेचेंगे। वह मेरे रेस्टोरेंट के लिए सबसे अच्छी जगह है। दूसरा मैं आपकी सेविंग्स नही लेना चाहता। इस उम्र में वही आपका सहारा है।" 

जेम्स ने अपना पक्ष रखा। फिर उन्हें सांत्वना देते हुए बोला, 

"डैड कुछ ही सालों की बात है। फिर तो मैं वापस आ ही जाऊँगा।"

मिस्टर डिसूज़ा कुछ नही बोले। कैसे समझाते कि इस उम्र में यह कुछ साल ही बहुत हैं। आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर जेम्स अपनी पत्नी तथा छह महिने के पीटर को लेकर आस्ट्रेलिया चला गया। उनके चले जाने से दोनों पति पत्नी के जीवन में एक खालीपन आ गया।अपने पोते के साथ वक्त बिताने की उनकी इच्छा अधूरी रह गई।

उनके बीच आई दूरी को इंटरनेट ने कुछ हद तक कम कर दिया। लगभग रोज़ ही वह और उनकी पत्नी स्काइप के ज़रिए अपने बच्चों से बात करते थे। जब से पीटर ने बोलना आरंभ किया वह अपनी तोतली ज़ुबान में उनसे खूब बात करता था। जब थोड़ा बड़ा हुआ तो अपनी मांगें भी बताने लगा। इस प्रकार बात करने से कुछ तसल्ली अवश्य मिल जाती थी परंतु वह चाहते थेे कि बच्चे जल्द से जल्द वापस आ जाएं। 

जेम्स को गए पांच साल हो गए थे। एक दिन उसने बताया कि उसने भारत लौटने का मन बना लिया है। कुछ ही दिनों में वह वापस आ जाएगा फिर अपना रेस्टोरेंट खोलने की प्रक्रिया आरंभ करेगा। दोनों पति पत्नी उन लोगों के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे इंतज़ार और मुश्किल होता जा रहा था।

अब केवल एक ही हफ्ता बचा था उनके लौटने में। अपने बच्चों के स्वागत के लिए पति पत्नी ने कई तैयारियां की थीं। पीटर के लिए उन्होंने ढेर सारे खिलौने तथा कपड़े खरीदे थे। 

मिस्टर डिसूज़ा अपनी पत्नी के साथ बैठे बातें कर रहे थे तभी फोन की घंटी बजी। मिस्टर डिसूज़ा ने फोन उठाया। फोन आस्ट्रेलिया से था। कुछ पलों के लिए मिस्टर डिसूज़ा की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। 

पिछली रात जब जेम्स अपने परिवार के साथ उसके सम्मान में दिए गए भोज से लौट रहा था तब कुछ अराजक तत्वों ने उन पर हमला कर उन्हें मार डाला। दोनों पति पत्नी दुख के सागर में डूब गए। 

उनके जीवन में कोई उम्मीद नही रह गई थी। लेकिन मिस्टर डिसूज़ा ने जल्द ही महसूस किया कि दुख को गले लगाए रहने से कोई लाभ नही है। उन्होंने स्वयं को उस दुख से बाहर निकाल लिया। परंतु अनेक प्रयासों के बाद भी अपनी पत्नी को उनके ग़म से नही उबार पाए। मनोचकित्सक को दिखाया किंतु कोई लाभ नही हुआ। वह ना तो कुछ बोलती थीं और ना ही किसी से मिलना पसंद करती थीं। बस चुपचाप बैठी रहती थीं। उनकी इस हालत से मिस्टर डिसूज़ा बहुत दुखी रहते थे।

यह सब सोचते हुए बहुत देर हो गई थी। मिस्टर डिसूज़ा भीतर आए तो देखा कि उनकी पत्नी अभी भी वैसे ही बैठी थीं। कमरे में अंधेरा था। उन्होंने बत्ती जलाई और आकर उनके पास बैठ गए। उनकी मौजूदगी का भी उन पर कोई असर नही हुआ। उन्होंने उनका कंधा पकड़ कर हिलाया।

"रोज़ यह क्या है। कब तक ऐसे ही अपने दुख को पकड़े रहोगी। प्लीज़ मेरे लिए इससे बाहर आओ।"

उनकी पत्नी कुछ क्षण उन्हें देखती रहीं फिर उनके गले से लग कर फ़फक फ़फक कर रोने लगीं। मिस्टर डिसूज़ा प्यार से उनके सर पर हाथ फेरने लगे। उन्हें समझाते हुए बोले,

"यह कपड़े और खिलौने तुम्हें तुम्हारे दुख से बाहर नही आने दे रहे हैं। इन्हें अपने दुख का कारण बनाने की बजाय दूसरों की खुशी का कारण बनाओ। हम इन्हें जरूरतमंदों में बांट देंगे।"

क्रिसमस में कुछ ही दिन बचे थे। मिस्टर डिसूज़ा ने सारे कपड़ों और खिलौनों को अच्छी तरह गिफ्ट रैप किया। सारा सामान कार में लाद कर अपनी पत्नी के साथ चर्च द्वारा संचालित अनाथआलय में गए। उन्हें देख कर बच्चों के चेहरे खिल उठे। उन्होंने सारे तोहफे बच्चों में बांट दिए। कई दिनों के बाद उनकी पत्नी ने कोई प्रतिक्रिया दी। वह बच्चों के सर पर प्यार से हाथ फेर रही थीं।