Pida me Aanand - 15 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 15 - तुम्हारी प्रेरणा

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पीड़ा में आनंद - भाग 15 - तुम्हारी प्रेरणा



  तुम्हारी प्रेरणा 


कल वह खास दिन था जब मुकेश की पहली फिल्म का प्रीमियर होने वाला था। वह ना तो इस फिल्म का निर्देशक था और ना ही फिल्म का हीरो। पर इस फिल्म में उसकी अहम भूमिका थी।‌ अड़तालीस साल की उम्र में वह अपना एक्टर बनने का सपना पूरा करने जा रहा था। अपने इस सपने को सच करने के लिए उसे बहुत कुछ सहना पड़ा था। उसके संघर्ष में उसकी पत्नी रमा ने उसका भरपूर साथ दिया था।

कॉलेज पूरा करने के बाद उसने बड़ी हिम्मत करके अपना फैसला अपने पापा को सुनाया था। उसका फैसला सुनकर कुछ देर तक वह उसे घूरते रहे थे। उसके बाद पास खड़ी उसकी मम्मी से बोले,

"सुना साहबजादे क्या फरमा रहे हैं। इतने अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री ली। बड़ी बड़ी कंपनियों के ऑफर मिले हैं और इन्हें परोसी हुई थाली छोड़कर अनाज उगाने जाना है। पता नहीं आजकल की पीढ़ी अपनी ज़िम्मेदारी क्यों नहीं समझती है। बस जो मन में आया वही करने की ज़िद।"

मुकेश ने अपनी मम्मी की तरफ देखा। उन्होंने कुछ कहा नहीं‌। पर चेहरे से स्पष्ट था कि उनका भी वही खयाल है जो उसके पापा का है। उसने समझाने की कोशिश की,

"पापा एक्टर बनना मेरा सपना है। आप लोगों की खुशी के लिए मैंने इंजीनियरिंग की। अब आप लोग मेरी खुशी के लिए मान जाइए।"

उसकी मम्मी ने गुस्से से कहा,

"तुम्हारी बेवकूफी भरी बात कैसे मान लें ? समझदारी तो यही है कि नौकरी करो। खुद भी सुख से रहो हमें भी रहने दो। पर तुम धक्के खाने जाना चाहते हो।"

यह कहते हुए उसकी मम्मी रोने लगीं। उसके पापा ने सख्ती से अपना फैसला सुना दिया,

"ऐसा है मुकेश कि तुम्हारी पढ़ाई पर अच्छी खासी रकम खर्च की है मैंने। इसलिए अपना फितूर दिमाग से निकाल कर चुपचाप नौकरी करो। अपनी ज़िम्मेदारी संभालो। मुझे भी अब कुछ राहत दो।"

मुकेश ने एक दो और नाकाम कोशिशें कीं पर बात बिगड़ते देख चुप रह गया। उसने सोचा कुछ दिन नौकरी कर लेता है। पापा को तसल्ली हो जाए उसके बाद सोचेगा। वह नौकरी करने लगा। अच्छी नौकरी थी। उसके लिए रिश्ते आने लगे। एकबार फिर मुकेश को दबना पड़ा। उसकी और रमा की शादी हो गई‌। कुछ समय में बेटा भी हो गया‌।

ऊपर से सबकुछ सामान्य था। सभी का कहना था कि मुकेश की ज़िंदगी तो सेट है। अच्छी नौकरी है। सुघड़ पत्नी है, बच्चा है। भला और क्या चाहिए ? सब खुश थे। मुकेश ने भी खुद को तसल्ली दे दी थी कि जो है वह सही है। जीवन में सबकुछ नहीं मिलता है। वह भी अपने आप को खुश रखने की कोशिश करता था। एक हद तक इसमें सफल भी था। पर मन में कहीं इस बात की टीस थी कि जो चाहता था वह कर नहीं पाया। 

ज़िंदगी अच्छी गुज़र रही थी। बेटा बड़ा हो रहा था। उसकी पढ़ाई और बाकी की ज़िम्मेदारियां बढ़ रही थीं। रमा ने उनमें हाथ बंटाने के लिहाज़ से खुद भी काम करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते बहुत वक्त गुज़र गया। रमा का काम अच्छा चल रहा था। मुकेश तरक्की कर अच्छी पोस्ट पर आ गया था। उसके बेटे ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया था। मुकेश अब एक्टर बनने की अपनी इच्छा को पूरी तरह दबा चुका था। वह अब अपने बारे में सोचने की जगह अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोचता था। 

अक्सर ऐसा होता है कि राख देखने पर यह लगता है कि आग बुझ चुकी है। पर थोड़ा सा कुरेदने पर पता चलता है कि अंदर अभी भी चिंगारी है। मुकेश की ज़िंदगी भी ऐसी ही थी। वह देखने में अपने जीवन से संतुष्ट नज़र आता था। मगर फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने मन में दबी चिंगारी को हवा दे दी। 

बेटे की कॉलेज की छुट्टियां चल रही थीं। मुकेश अपने परिवार के साथ हिल स्टेशन घूमने गया। एक हफ्ता रुकने का प्लान था। उसने होटल में ठहरने की जगह एक कॉटेज में ठहरने की व्यवस्था कर ली। यह कॉटेज जगदीश रावत की थी। जगदीश उस कॉटेज के ऊपरी हिस्से में रहते थे।

दिनभर अपने परिवार के साथ घूमने के बाद मुकेश कॉटेज लौटकर आया। रमा और उसका बेटा थक गए थे और डिनर करके सो गए। मुकेश जगदीश के साथ कॉटेज के बैकयार्ड में बॉनफायर करके बैठा था। तीन दिनों में ही उसकी और जगदीश की अच्छी जान पहचान हो गई थी। दोनों बैठकर बातें कर रहे थे। बातचीत का सिलसिला इधर उधर की बातों से होता हुआ इस बात पर आ गया कि क्या वह दोनों अपनी ज़िंदगी से पूरी तरह संतुष्ट हैं। मुकेश ने जवाब दिया कि उसके जीवन में अब तक जो हुआ सब अच्छा रहा। उसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है। उसका जवाब सुनकर जगदीश कुछ देर उसके चेहरे को देखता रहा। उसके बाद बोला,

"मुकेश.... बुरा मत मानना। पर मुझे नहीं लगता है कि तुम सही कह रहे हो।"

यह बात मुकेश को अजीब लगी। उसकी और जगदीश की जान पहचान बहुत पुरानी नहीं थी। फिर भी उसने बिना किसी संकोच के उसे गलत कह दिया था। वह आश्चर्य से उसकी तरफ देख रहा था। उसकी स्थिति को समझ कर जगदीश ने कहा,

"मैं समझ रहा हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो ? मैं तुम्हें बहुत समय से नहीं जानता हूँ। पर तुमसे बात करते हुए मुझे ऐसा लगा कि तुम खुलकर अपने मन की बात नहीं कर रहे हो। मैं मुंहफट हूँ इसलिए जो लगा तुमसे कह दिया। हो सकता है कि मैं गलत हूँ। पर मुझे जो लगा मैंने बोल दिया। वैसे लोगों का कहना है कि मैं किसी का भी मन पढ़ सकता हूँ।"

मुकेश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। पर जगदीश की बात ने उसके मन में एक हलचल पैदा कर दी थी। वह यह कहकर अपने कमरे में चला गया कि उसे नींद आ रही है।

हिल स्टेशन से लौटने के कई दिनों बाद तक जगदीश की कही बात मुकेश के मन में घूमती रही। उसे लग रहा था कि वह अपने आप से ही छल कर रहा था। यह मानने का प्रयास कर रहा था कि वह संतुष्ट है। पर ऐसा था नहीं। वह सिर्फ खुद को भुलावे में रख रहा था। उसने महसूस किया कि जब कभी उसके मन में इस बात की टीस उठती थी कि वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाया तो वह पूरी ताकत से इस बात को दबाने की कोशिश करता था। बहुत से तर्क देकर अपने आप को समझाता था कि सब ठीक है। धीरे धीरे उसने उस चिंगारी को राख के नीचे दबा दिया था। जगदीश ने उसे फिर हवा दे दी थी।

अब वह मन ही मन छटपटा रहा था। यह खयाल उसे जीने नहीं दे रहा था कि वह अपने आप को धोखे में रख रहा था। वह कुछ कहता नहीं था पर इसका असर उसके व्यवहार पर पड़ रहा था। शांत स्वभाव का मुकेश अब बात बात पर भड़कने लगा था। उसके इस बदलाव का सबसे अधिक असर रमा पर पड़ा था। 

रमा ने मुकेश के बदले हुए स्वभाव के बारे में जानने की कोशिश की पर उसने कभी भी उसे सही बात नहीं बताई। बहाने बनाकर टालता रहा। रमा इससे संतुष्ट तो नहीं थी पर उसकी कोई कोशिश काम नहीं आ रही थी। तीन महीने बीत गए थे। इस बात से वह बहुत परेशान थी कि मुकेश के साथ कोई समस्या है पर वह बता नहीं रहा है। रमा की परेशानी बढ़ रही थी पर मुकेश के दिल में झांकने की कोई राह नहीं मिल रही थी।

एक दिन मुकेश अपनी कार निकाल रहा था। उस समय उसकी कार की टक्कर पार्किंग में खड़ी हुई दूसरी कार से हो गई। गलती मुकेश की थी पर अपनी गलती मानने की जगह वह लड़ाई पर आमादा हो गया। बहस बढ़ गई और बात हाथापाई तक पहुँच गई। जैसे तैसे लोगों के बीच बचाव से मामला सुलझा। यह रमा के लिए एक चेतावनी थी कि अब कुछ भी करके मुकेश के अंदर क्या चल रहा है जानना है। उसने मुकेश से पूछा तो उसने फिर टालने की कोशिश की। पर रमा अड़ गई। उसने कहा,

"मुकेश आज तो तुमको बात करनी ही पड़ेगी। अभी तक तुम मुझ पर और हमारे बेटे पर गुस्सा दिखाते थे। आज बाहर वालों से झगड़ रहे थे। क्या हो गया है तुम्हें ? पहले कभी दूसरों की गलती पर भी इतना नाराज़ नहीं होते थे। आज अपनी गलती पर मारपीट पर उतर आए। इतने समय से देख रही हूँ। तुम वो मुकेश नहीं रहे जिससे मैंने शादी की थी। अब बताओ कि इस बदलाव का कारण क्या है ?"

मुकेश भी अपने अंदर आई खीझ से परेशान था। अब तक यह खीझ उसके परिवार पर निकल रही थी। आज उसने बाहर के आदमी से झगड़ा किया। इस बात का उसे भी अफसोस था। उसने रमा को सारी बात खुलकर बता दी। सब सुनकर रमा भी चुप हो गई।

कुछ और समय बीत गया। मुकेश अब पहले की तरह गुस्सा नहीं होता था। पर स्थिति और बिगड़ गई थी। वह अब अंदर ही अंदर घुल रहा था। उसकी इस नई स्थिति से रमा और दुखी हो गई थी। उसने मन में एक फैसला करके मुकेश से बात की,

"मुकेश अब तो तुम एकदम ही चुप हो गए हो। पहले अपना दुख गुस्सा करके निकाल देते थे। अब तो बस गुमसुम रहते हो‌। मुझसे यह सब देखा नहीं जा रहा है। कुछ करो।"

मुकेश ने निराशा से कहा,

"क्या करूँ ? कुछ समझ नहीं आ रहा है। अब तो पहले की तरह मन को यह धोखा भी नहीं दे पा रहा हूँ कि सब ठीक है‌।"

"धोखा देने की ज़रूरत क्या है‌। वह करो जो करना चाहते हो।"

रमा की बात सुनकर मुकेश ने उसे आश्चर्य से देखा। उसने कहा,

"जब कुछ करना था तब किया नहीं। अब भला क्या कर पाऊँगा। अब तो उम्र हो गई। इस उम्र में संभव हो पाएगा।"

रमा ने समझाया,

"यह बात सच है कि बहुत देर हो गई है। अब अपना सपना पूरा करना बहुत कठिन होगा। लेकिन तुम जिस हालत से गुज़र रहे हो वह भी ठीक नहीं है। कोशिश करके हार भी गए तो कुछ ना करने का पछतावा तो नहीं रहेगा‌।"

मुकेश कुछ दिनों तक रमा की बात पर विचार करता रहा। उसे रमा की बात ठीक लग रही थी पर इस बात का भी डर था कि एक नई शुरुआत कैसे कर पाएगा। उसने अपनी दुविधा रमा को बताई। रमा ने कहा,

"मुकेश कुछ नया करने के लिए हमें अपने दायरे से बाहर निकलना पड़ता है। यह मुश्किल काम है। पर सच तो यह है कि अब निर्णय तुम्हें करना होगा। अच्छी तरह सोच लो। मैं तुम्हारे फैसले में पूरी तरह साथ रहूँगी‌। पर यह नहीं चाहती कि तुम घुट घुटकर जिओ‌।"

रमा की बात ने मुकेश को हौसला दिया। सोच विचार कर उसने तय किया कि वह अपने सपने को पूरा करने के लिए पूरी ईमानदारी और धैर्य के साथ कोशिश करेगा‌।

मुकेश ने एक थिएटर ग्रुप ज्वाइन कर लिया। कुछ दिन एक ट्रेनी के तौर पर काम किया। फिर उनके नाटकों में अभिनय शुरू कर दिया। अपनी मेहनत से उसने अपनी प्रतिभा को निखार लिया। अब उसे अच्छे किरदार करने का मौका मिलने लगा था‌। दो साल तक मुकेश ने उस ग्रुप के साथ थिएटर किया। फिर उसे ग्रुप के सबसे सफल नाटक में एक अहम भूमिका निभाने का मौका मिला।

मुकेश अब बहुत हद तक संतुष्ट हो गया था। अब उसकी इच्छा थी कि किसी तरह एक फिल्म करने का मौका मिल जाए। उसे यह मौका भी मिल गया। एक फिल्म निर्माता ने उसके नाटक का शो देखा तो बहुत प्रभावित हुए। वह एक फिल्म बना रहे थे। उसमें एक अहम किरदार के लिए उन्होंने उसे अपने दफ्तर आकर स्क्रीन टेस्ट देने को कहा। उसने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास हो गया।

मुकेश को फिल्म मिल गई। उसने पूरी शिद्दत के साथ अपना रोल किया। फिल्म बनकर तैयार हो गई थी। कल उसका प्रीमियर था। 

रमा ने अपने वादे के मुताबिक उसके फैसले में उसका पूरा साथ दिया था। रमा के साथ की वजह से ही वह उस घुटन भरी स्थिति से निकल कर अपना सपना पूरा कर पाया था। मुकेश कल के प्रीमियर के बारे में आवश्यक बात करने के लिए निर्माता के पास गया था। वहाँ से फुर्सत पाकर वह रमा से मिलने के लिए चला गया।

शहर के बड़े अस्पताल की पार्किंग में उसने गाड़ी खड़ी की। वह तेज़ कदमों से अस्पताल के अंदर गया। कमरे के दरवाज़े पर पहुँचा तो बाहर निकलती हुई नर्स से भेंट हो गई। नर्स ने कहा,


"मुबारक हो सर कल आपकी फिल्म का प्रीमियर है। मैम बहुत उत्साहित हैं।"

यह कहकर नर्स चली गई। मुकेश अंदर गया तो उसके बेटे ने इशारे से पूछा की क्या हुआ ? मुकेश बेड के पास गया। बिस्तर पर लेटी हुई रमा के सर पर हाथ फेरकर कहा,

"तैयार हो ना रमा। तुमने कहा था कि मुझे स्क्रीन पर देखकर सीटी बजाओगी।"

बिस्तर पर पड़ी रमा हिलने डुलने की स्थिति में नहीं थी। पर मुकेश उसकी आँखों में चमक देख सकता था। उसे स्क्रीन पर देखने का सपना रमा की आँखों में भी पला था। उसने भी बड़े धैर्य के साथ उसके सच होने की प्रतीक्षा की थी‌। पर फिल्म जब पोस्ट प्रोडक्शन में गई तो उसका एक्सीडेंट हो गया। रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी। डॉक्टर ने कहा था कि सामान्य होने में बहुत वक्त लगेगा। 

"पापा क्या उन्होंने आपकी रिक्वेस्ट मान ली ?"

मुकेश ने अपने बेटे के सर पर हाथ रखकर कहा,

"हाँ और अस्पताल ने भी इजाज़त दे दी है। कल तुम्हारी मम्मी के लिए यहाँ स्पेशल स्क्रीनिंग होगी। अब देखो तुम्हारी मम्मी मुझे एक्टिंग में कितने नंबर देती है।"

तकलीफ़ में भी रमा के चेहरे पर जीत की मुस्कान थी।