Pida me Aanand - 6 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 6 - चींटी चढ़ी दीवार पर

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पीड़ा में आनंद - भाग 6 - चींटी चढ़ी दीवार पर


    चींटी चढ़ी दीवार पर


वंश और दीप्ति बीच पर पहुँचे तो दोनों को ही भूख लग रही थी। दीप्ति ने सुझाव दिया।

"चलो एक एक वड़ा पाव खाते हैं।"

वंश दोनों के लिए वड़ा पाव ले आया। पास पड़ी बेंच पर बैठ कर दोनों खाने लगे। दोनों ही खामोश थे। दीप्ति वंश से आज उसका निर्णय सुनना चाहती थी। पर उस विषय को उठाए कैसे यही सोच रही थी।

वंश भी जानता था कि दीप्ति वह विषय उठाएगी। पर अभी तक वह अनिर्णय की स्थिति में था। अभी उसके पास दीप्ति को देने के लिए कोई सीधा जवाब नहीं था। अगर वह जवाब देता भी तो वह किसी लेकिन पर जाकर ठहर जाता।

दीप्ति ने अपने मन में चल रही उहापोह को समाप्त करते हुए बात छेड़ ही दी।

"वंश....क्या सोचा है तुमने ? मेरे माँ बाप अब और कितना इंतज़ार करेंगे। देखो वो गलत भी नहीं हैं। उन्होंने हमारे रिश्ते को स्वीकार किया है। इतना वक्त दिया है। पर कभी तो उन्हें भी फैसला करना ही पड़ेगा ना।"

वंश फौरन कुछ नहीं बोल सका। वह इधर उधर देख रहा था। जैसे दीप्ति के सवाल का जवाब वहीं कहीं टहल रहा हो।

"कुछ तो बोलो वंश...."

"क्या बोलूँ मैं ? कर तो रहा हूँ कोशिश। हर बार लगता है कि जैसे बात बन गई। पर आखिरी वक्त में सब बिगड़ जाता है।"

वह उठा। अपनी और दीप्ति की कागज़ की प्लेट पास रखे डस्टबिन में डाल दी। वापस बैठते हुए बोला।

"मैं मानता हूँ कि तुम्हारे मम्मी पापा ने हमारा बहुत साथ दिया है। पर वो जानते हैं ना कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ। तुम्हारे साथ ही ज़िंदगी बताऊँगा। तो थोड़ा सा धैर्य और रख लें।"

"थोड़ा सा धैर्य....वंश हम पाँच साल से एक दूसरे के साथ हैं। कम नहीं होते पाँच साल। देखो मेरे माता पिता होने के नाते उन्हें मेरी फिक्र होना स्वाभाविक है। अगर वो चाहते हैं कि अब मेरा घर बस जाए तो क्या गलत है।"

"मैं उन्हें गलत कब कह रहा हूँ। वो ठीक हैं पर मैं भी गलत तो नहीं हूँ। एक बार मौका मिल जाए। फिर मैं पीछे मुड़ कर नहीं देखूँगा।"

दीप्ति वंश की समस्या समझ रही थी। वह खिसक कर उसके नज़दीक आ गई।

"वंश ज़िंदगी में भावनाओं और व्यवहारिकता दोनों की ही अपनी जगह है। हर फैसला भावनात्मक रूप से नहीं लिया जा सकता है। बहुत बार व्यवहारिक होना पड़ता है।"

दीप्ति ने वंश के चेहरे को ध्यान से देखा। अपनी बात की प्रतिक्रिया देखनी चाही। उसे लगा कि वंश उसकी बात समझने की कोशिश कर रहा है।

"देखो तुमने अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं रखी। पर हर चीज़ की एक सीमा होती है। तुम्हारे पास दूसरा विकल्प है ना। तुम बात मान लो। सच मानो हम बहुत खुश रहेंगे।"

वंश कुछ पलों तक दीप्ति को देखता रहा।

"तुम्हारा मतलब है कि अपनी हार मान कर मैं खुश रहूँगा। मुझे नौकरी ही करनी होती तो लगी लगाई छोड़ कर यहाँ संघर्ष करने ना आता। मेरे मम्मी पापा को भी धक्का लगा था जब अपनी नौकरी छोड़ कर मैं सिंगर बनने के लिए यहाँ आया था।"

"मैंने अभी व्यवहारिकता की बात की थी। तुम अभी उसको समझ नहीं रहे हो। ज़िंदगी में किसी राह पर चलते हुए अगर मंज़िल ना मिले तो दूसरी राह पकड़ लेना हार मानना नहीं होता है।"

"तो क्या होता है ?"

"समझदारी.... अंकल तुम्हें अपने बिज़नेस में काम देने को तैयार हैं। मुझे तुम्हारी काबिलियत पर यकीन है। तुम उन्हें निराश नहीं करोगे।"

वंश दीप्ति की बात सुन कर मुस्कुरा दिया। पर इस मुस्कान में व्यंग था।

"तुम्हें मेरी काबिलियत पर यकीन है। तभी मैदान छोड़ने को कह रही हो।"

वंश का यह व्यंग दीप्ति को चुभ गया। उसके चेहरे पर पीड़ा साफ देखी जा सकती थी।

"दीप्ति तुम सही हो। तुम्हारे माता पिता भी कब तक इंतज़ार करेंगे। मैं अपना फैसला नहीं बदलूँगा। तुम अपना फैसला करने के लिए आज़ाद हो।"

"तुम जानते हो कि मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी। तुम अपनी ज़िद छोड़ते हो या नहीं यह तुम्हारा फैसला है।'

दीप्ति उठ कर खड़ी हो गई।

"मैं अंकल से बात करके तुम्हें फोन पर बता दूँगी कि कहाँ मिलना है। बाकी तुम जैसा चाहो फैसला कर लेना।"

दीप्ति चली गई। वंश कुछ देर तक ऐसे ही बीच पर टहलने के बाद लौट गया।

वंश जब फ्लैट पर पहुँचा तो उसका फ्लैट मेट करन उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

"वो तुमसे बात करनी थी।"

"हाँ कहो...."

"वंश पिछले महीने मैंने तुम्हारे हिस्से का किराया भी दिया था।"

"हाँ....याद है मुझे। मैं दो एक दिन में पैसे वापस कर दूँगा।"

"उसकी ज़रूरत नहीं। अगले महीने का किराया देने का समय हो गया है। इस बार तुम हम दोनों का किराया भर देना। देखना समय पर हो जाए। वरना मेहता किटकिट करता है।"

यह कहकर करन अपने काम पर चला गया।

वंश अपने गुजारे के लिए एक नाइट क्लब में गाता था। मतलब भर का पैसा मिल जाता था। कुछ एक बच्चों को म्यूज़िक भी सिखा देता था। इस तरह काम चल रहा था। बाकी समय वह इंडस्ट्री में एक ब्रेक पाने के लिए कोशिश करता था।

इधर उसके दो अच्छे ट्यूशन हाथ से निकल गए थे। क्लब से भी पेमेंट मिलने में देर होने लगी थी। इसलिए हिसाब गड़बड़ा गया था।

वंश दीप्ति की व्यवहारिकता वाली बात को याद करने लगा। दीप्ति भी गलत नहीं कह रही थी। व्यवहारिकता सचमुच ज़रूरी है। वह और करन दो साल से इस छोटे से फ्लैट को शेयर कर रहे थे। दोनों में अच्छी बनती थी। पर इधर जबसे उसने उधार मांगना शुरू किया है तब से करन कुछ खिंचा खिंचा रहने लगा है।

करन जो कर रहा है वह बुरा नहीं है। आखिर वह भी मेहनत से पैसा कमाता है। इस शहर में गुज़ारा वैसे भी मुश्किल है। फिर उसे अपने घर कुछ पैसे भेजने पड़ते हैं। उसमें से भी अगर वह उधार ले लेगा तो परेशानी होगी ही।

इस समय वंश बहुत ही कठिन समय से गुज़र रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। उसने प्लेबैक सिंगिंग का एक मौका पाने के लिए कितनी कोशिशें की पर हर बार नाकामयाब रहा। 

ऐसा नहीं था कि उसमें योग्यता की कमी थी। वह एक अच्छा गायक था। अपने स्कूल के दिनों में उसने बाकायदा संगीत सीखा था। एक सफल सिंगर बनने की चाह लेकर वह यहाँ आया था। यहाँ आने के लिए उसे अपने मम्मी पापा को बहुत मनाना पड़ा था।

संगीत उसका पैशन था। पर घरवालों के दबाव में उसे कॉमर्स पढ़ना पड़ा। उसके बाद उसने एमबीए किया। एक प्राइवेट बैंक में उसे जॉब भी मिल गई थी। पर वह संतुष्ट नहीं था। उसके भीतर का कलाकार बाहर आने के लिए मचल रहा था। कॉलेज के समय उसने शहर के एक म्यूज़िक स्कूल द्वारा आयोजित एक गायन प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त किया था। तब से ही गायक बनने की उसकी इच्छा बलवती थी।

पर उसका प्रारब्ध उसे बैंकिंग में ले गया था। साल भर उसने वहाँ काम भी किया। पर उसका मन हर वक्त उसे कचोटता था। उसने मुंबई आकर भाग्य आज़माने का फैसला लिया।

उसका यह फैसला सुन कर माता पिता परेशान हो गए। उन्होंने समझाया कि जो वह सोच रहा है वह ठीक नहीं। लगी लगाई नौकरी छोड़ कर एक ऐसे करियर के लिए कोशिश करना जहाँ भविष्य अनिश्चित है मूर्खता के अलावा कुछ नहीं है। तब वंश उन्हें अपने तर्क देता था।

कई दिनों तक रोज़ ही घर में तर्क वितर्क होता था। माता पिता अपनी बात करते। वंश अपनी दलीलें देता। पर एक दिन उसने अपना फैसला ही सुना दिया।

"पापा मैंने तय कर लिया है कि मैं मुंबई जाऊँगा।"

पिता ने भी बिना डांट डपट के संजीदगी से समझाया।

"बेटा अगर मैं अपनी बात कहूँ तो जो हाथ में है उसे फेंक कर किसी और चीज़ के पीछे भागना बेवकूफी है। पर तुम जवान हो। तुम्हारे ज़िम्मेदार होने पर भी मुझे कभी कोई शक नहीं रहा है। इसलिए तुमने जो फैसला लिया है उसके मुताबिक चलो। हम रोकेंगे नहीं। पर एक बात का खयाल रखना कि अपने फैसले पर खरे उतरना। जो भी झेलना पड़े झेलना। क्योंकि कल अगर तुम हार कर आ गए तो हम तो माँ बाप होने के नाते तुमको गले से लगा लेंगे। पर समाज कोई मौका छोड़ता नहीं है।"

अपने पिता की सीख लेकर वह मुंबई आया था। उसने सोचा था कि एक कामयाब सिंगर बनकर अपने शहर जाएगा। लोग उसके नाम से उसके शहर को पहचानेंगे। मम्मी पापा को उस पर गर्व होगा। लेकिन अब तक वह नहीं हुआ था जो उसने सोचा था। वह अपने फैसले पर डटा था। लेकिन अब उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी। कई बार उसकी कोशिशें सफल होते होते रह गई थीं। उसके साथ स्ट्रगल करने वाला वसीम एक ट्रूप के साथ कॉन्सर्ट पर गया था। उसे भी जाने का मौका मिला था। पर उस वक्त तबीयत खराब होने की वजह से वह जा नहीं सका। उसे पछतावा था कि अगर जा पाता तो अच्छा पैसा मिल जाता। इसलिए अब अक्सर उसे लगता था कि शायद उसकी किस्मत में सफलता लिखी ही नहीं है।

उसके संघर्ष में दीप्ति ने उसका अच्छा साथ दिया था। उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया था। उसके घरवालों ने भी उसके फैसले को स्वीकार किया था। पर अब वह चाहते थे कि दीप्ति इस रिश्ते को अंजाम दे। इसलिए वह चाहते थे कि वंश अपना स्ट्रगल छोड़कर उनकी बताई जगह पर नौकरी कर ले। दीप्ति ने भी उसे चुनाव करने को कहा था। पर वह ना तो दीप्ति को छोड़ने की स्थिति में था। ना ही अपनी जद्दोजहद को।

वंश ने किचेन में जाकर देखा। उसके हिस्से का खाना रखा हुआ था। उसने खाना परोसा और कमरे में बैठ कर खाने लगा। उसके फोन पर एक कॉल आई। यह कॉल रितेश की थी। वह भी उसकी तरह ब्रेक पाने के लिए संघर्ष कर रहा था।

"हैलो....."

"वंश.... एक अच्छी खबर है। मराठी फिल्मों के संगीतकार कुमार गंधर्व हिंदी फिल्म के लिए नई आवाज़ें तलाश रहे हैं। डेढ़ घंटे में ऑडिशन है। मैं जा रहा हूँ। तू भी फटाफट तैयार हो। मैं पता वाट्सअप करता हूँ।"

खबर अच्छी थी। पर आज वंश पहले की तरह खुश नहीं हुआ। वह अनिश्चय में खाना खाता रहा। रितेश का मैसेज भी मिल गया।

कुछ ही देर बाद दीप्ति का फोन आया।

"वंश अंकल शाम को तुमसे मिलने को तैयार हैं। अगर चाहो तो घर जाकर मिल लेना।"

दीप्ति कुछ रुक कर बोली,

"सोच समझ कर फैसला लेना। तुम जो भी फैसला करो मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।"

दीप्ति ने फोन काट दिया। वंश खाना खत्म कर बिस्तर पर लेट गया।

उसे बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आई।

दाना लेकर एक चींटी दीवार पर चढ़ने का प्रयास करती है। पर फिसल कर गिर जाती है। वह फिर से दाना लेकर चढ़ने की कोशिश करती है। दोबारा फिसल कर गिर जाती है। कई बार वह कोशिश करती है। हर बार वह असफल रहती है। पर चींटी ज़िद्दी थी। प्रयास नहीं छोड़ती।

एक बार फिर वह दाना लेकर चढ़ने की कोशिश करती है। इस बार सफल हो जाती है।

कहानी की सीख थी कि प्रयास करते रहो। ना जाने कौन सा प्रयास सफल हो जाए।

वंश भी कई बार असफल प्रयास करता रहा था। लेकिन हर बार जब वह दोबारा ऑडिशन पर जाता तो पूरी उम्मीद के साथ जाता था। आज फिर बचपन में मिली सीख ने उसे नई उम्मीद दी।

वंश ने रितेश का भेजा मैसेज देखा। फिर ऑडिशन पर जाने के लिए तैयार होने लगा।