15 अगस्त 1947,
हवा में एक अजीब सी महक थी—आज़ादी की महक।
भारत आज़ाद हो चुका था।
जगह-जगह तिरंगा शान से फहरा रहा था।
हर तरफ उमंग और उत्साह का माहौल था।
पर कुछ तो अजीब था, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया।
पर क्या?
अंग्रेज या तो लौट चुके थे या लौटने की तैयारी में थे,
पर उनसे कुछ तो छूट गया था।
कुछ ऐसा जिसे उनके साथ ही लौट जाना चाहिए था, पर वह भारत में ही रह गया।
उस वक्त वह क्या था, किसी को पता नहीं था।
यह भी नहीं पता था कि अंग्रेज इसे भूल गए हैं या जानबूझकर छोड़ गए हैं।
पर आज़ादी के इतने साल बाद अब पता चल ही गया कि क्या छूटा था—
अंग्रेज तो चले गए, पर 'Divide and Rule' की नीति को यहीं छोड़ गए।
वही 'Divide and Rule', जिसके दम पर अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 साल तक राज किया।
अब यह नीति हमारे नेताओं के हाथ लग गई है।
और मानना पड़ेगा, जिस तरह से हमारे नेताओं ने इसका इस्तेमाल किया है, उस तरह से तो अंग्रेज भी नहीं कर पाए थे।
अगर कोई मुझसे पूछे कि आज़ादी से पहले और अब में क्या अंतर है?
तो मेरा जवाब होगा—
बस इतना ही कि पहले हम नंगे ही अंग्रेजों की गुलामी करते थे और अब लोकतंत्र के लिबादे में नेताओं की गुलामी करते हैं।
आज़ादी से पहले हमें पता था कि हम गुलाम हैं, और अब नहीं है।
क्या हम सच में आज़ाद हो गए हैं?