यमदूत और इंसान — एक पुरातन कथा
बहुत पुरान समय की बात है। तब यमराज के दूत धरती पर खुले-आम आया-जाया करत रहलें। जवन घरी कवनो इंसान के प्राण निकले के समय आवत रहे, लोग ओह दूत के देख लेत रहे। लोग डर में जीवल रहे, काहें कि मौत उनका सामने-सामने खड़ा हो जाला।
एही समय में एगो गाँव में एक परिवार में भारी दुर्भाग्य भइल। यमराज के पहिला दूत ओह परिवार के एक-एक आदमी, औरत, बच्चा—सबके प्राण ले गइल। घर में बस एक आदमी बचल—एक गरीब, सीधा-सादा लेकिन दिलेर आदमी। ओकरा नाम रहे देवनाथ।
देवनाथ दुख से टूट गइल। विश्वासी सब मर गइल, गांव छोड़ दिहल, लेकिन दुख के साथ-साथ ओकर भीतर विद्रोह जग गइल। उ कहलक—
“जवन दूत हमार परिवार ले गइल, ओही के हम रोकबो करब।”
जंगल की गुफा और जाल
देवनाथ गहिर जंगल में चल गइल। ऊ एक पुरान, फैला-फैला गाछ के नीचे खुदे हाथ से एक गुफा बनवलस। ओह गुफा में उ एक बड़ा दरवाजा, लोहा के बेड़ी और मजबूत जाल बनवलस।
उ इंतजार करेला लागल, काहें कि ऊ जाने लागल कि यमराज का दूत फेर कभी धरती पर नयका आत्मा लेवे जरूर आई।
कई महीना बीतल। एक दिन अँझार पाड़े ओह गुफा के बाहर अजीब सन्नाटा छा गइल। हवा थम गइल। देवनाथ समझ गइल—यमराज के दूत आ गइल।
दूत का आगमन और बंधन
दूत गुफा के पास आइल—ऊ काला, विशाल, तेज चमकवाला दूत रहे। देवनाथ हिम्मत जोड़ के सामने खड़ा भइल। दूत बोलल—
“मनुष्य, तोहार समय नजदीक बा। चल, हम रस्ता देखाई।”
देवनाथ चुपचाप दूत के अंदर ले गइल और जैसे ही दूत आगे बढ़ल—ऊ दुवार धड़ाम से बंद कर दिहल। ताला डालल, बेड़ी कस दिहल। दूत गरजल—
“मूर्ख! हमरा कैद कर सकेलऽ?”
देवनाथ शांत स्वर में कहलक—
“हमरा परिवार ले गइलऽ… अब जब तक तोहार साल भर के काम ना देख लेब, तब तक तोहरा बाहर ना निकलब देब।”
यमदूत कैद हो गइल।
धरती पर मृत्यु रुक गई
धीरे-धीरे पूरा संसार में लोग नोटिस करे लागल—
बूढ़ा आदमी बहुत बीमार रहे लेकिन ना मरत।
जवान लड़का भारी दुर्घटना में बच गइल।
पूरा गाँव में कवनो मरे वाला ना रहल।
मौत रुक गइल। धरती पर भारी भार बढ़े लागल। लोग के पीड़ा बढ़े लागल—जिन्हें मरना चाहिए था, वे भी कष्ट झेलते हुए जी रहे थे।
यमलोक में हलचल मच गई। यमराज क्रोधित हो गइलन—
“कौन मूर्ख हमारे दूत को रोक रहा है? धरती का नियम बिगड़ रहा है!”
यमराज खुद धरती पर उतर के ओह जंगल में पहुंचे। गुफा के दरवाजा खोले की कोशिश कइलन, लेकिन अंदर से आवाज आई—
देवनाथ: “पहिले सुनब, तब दुवार खुली!”
यमराज दंग रहि गइलन। एक मनुष्य उनसे बात कर रहल बा!
यमराज और मनुष्य का संवाद
यमराज गरज के कहले—
“क्यों कैद में रखलऽ हमरा दूत के? मौत का नियम बिगड़ गइल, धरती डगमगा रहल बा!”
देवनाथ शांत स्वर में कहल—
“महाराज, हम कानून ना तोड़ल चाहत बानी। बस, मन से टूटी लोगनी के दर्द एक बार देखी। एक साल धरती पर आप सबके काम देख लीं। लोग कइसे जी रहल बा, कइसे मर रहल बा—फिर बताइ कि अंतिम समय में कष्ट कम हो सकेला कि ना?”
यमराज देवनाथ के भाव समझ गइले। उनका मन में करुणा जग उठल। कहले—
“मनुष्य, तोहार हिम्मत और अपनों के प्रति प्रेम अद्भुत बा। हम एक वर्ष धरती पर संतुलन देखब।”
यमदूत के छोड़ दिहल गइल।
मनुष्य को मिला वरदान
जब संतुलन वापस आ गइल, यमराज देवनाथ के सामने खड़ा भइलन और बोललन—
“मनुष्य, तोहरा साहस के सम्मान में हम तोहके वरदान देतानी।”
वरदान:
देवनाथ के जीवन में कभी अकाल मृत्यु ना होई।
उनके परिवार फिर से बस जाई।
उनके घर में हमेशा शांति और समृद्धि रहे।
कुछ ही दिन बाद देवनाथ के गाँव वापसी भइल। लोग उनका आदर से देखल। धीरे-धीरे उनका विवाह भइल, संतानों के जन्म भइल, और उनका जीवन खुशियों से भर गइल।
यमदूत भी देवनाथ का सम्मान करे लागल, काहें कि वह अकेला मानव था जिसने मौत को रोकने की हिम्मत की थी—और वो भी किसी बदले में नहीं, बस अपने प्रियजनों के दर्द समझे के खातिर।
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कथा का संदेश
“मौत से बड़ा कोई नहीं, लेकिन प्रेम से बड़ा भी कोई नहीं।”
“साहस हमेशा इंसान को देवताओं तक पहुंचा देता है।”