🎨 बार-बार गिरती पेंटिंग
दीवार पर टँगी थी एक छोटी-सी बाल पेंटिंग,
टेप से चिपकी, उम्मीद से टिकाई हुई।
हर बार गिरती,
और वो लड़की मुस्कुराकर कहती —
“शायद अब टिक जाएगी…”
मगर नहीं —
कभी टेप कमजोर, कभी दीवार रूखी,
हर बार वही धप्प!
और टूटती उम्मीद।
आख़िर थककर उसने कहा —
“अब बस…”
और पेंटिंग को फेंक दिया।
तभी लगा —
रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं,
बार-बार जोड़ो, बार-बार थामो,
पर जब सामने वाला
हर बार गिर ही जाए,
तो एक दिन दिल भी कह देता है —
“अब बस…” 💔