मेहनतकश इंसान
सुबह की किरण संग उठ जाता है,
सपनों को हथेली पर रख घर से निकल जाता है।
पसीने की हर बूंद में चमकती आस,
मेहनत से ही बुझती है जीवन की प्यास।
धरती जोतता, ईंट गढ़ता,
रोज़ नए सपनों को आकार करता।
उसके हाथ भले खुरदरे सही,
पर दिल में उजले इरादे वही।
धूप की तपिश हो या सर्दी की मार,
कभी न रुकता उसका संघर्ष अपार।
राह कठिन हो, बोझ भले भारी,
हिम्मत उसकी कभी न हारी।
न नाम की चाह, न शोहरत का गुमान,
बस मेहनत ही उसका सच्चा ईमान।
उसकी थकन में भी चमकता उजाला,
मेहनतकश इंसान ही है जग को सहारा।
DB-ARYMOULIK