Hindi Quote in Poem by Devraj singh

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कभी सोचता हूँ—
अगर मैं मरकर भी अमर हो गया,
तो क्या ये अमरता
मेरे शब्दों की होगी,
या मेरी अधूरी कहानियों की?

शायद लोग पढ़ेंगे मुझे
एक अनजान दर्पण की तरह,
जिसमें झाँककर वे
अपने ही चेहरे देखेंगे।
और मैं…
फिर भी अनकहा रह जाऊँगा।

जीवन ने जितने प्रश्न दिए,
वे अधूरे ही रहे।
मृत्यु शायद
उनका उत्तर न बने,
पर शायद नई पहेली बन जाए।

क्या सचमुच अमर होना
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है?
या यह भी एक और बंधन है
जिससे आत्मा मुक्त नहीं हो पाती?

मैं डरता हूँ…
कि मेरी अमरता भी
मेरे ही शब्दों की कैद न बन जाए।
कहीं ऐसा न हो कि
मैं फिर लौट-लौटकर
अपनी ही कविताओं में
भटकता रह जाऊँ।

Hindi Poem by Devraj singh : 111996955
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