ईश्वर पाने का मार्ग
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
1. "पाना" और उसकी भूल
ईश्वर पाने का जो मार्ग है, वह संघर्ष और आक्रमण का मार्ग नहीं है।
"पाना" शब्द में ही कर्ता होने, हासिल करने, आक्रमण करने की गंध है।
धन, साधन, यश, नाम — यह सब संसार की दृष्टि में "पाना" है,
परंतु यह पाना अहंकार, अज्ञान और व्यर्थ का संचय है।
2. साधना और विधि
असली मार्ग है साधना और विधि।
जरूरतों को प्रेम, आनंद और होश से जीना ही भक्ति है।
जब हम अपने कर्म — शरीर, परिवार, कर्तव्य — को प्रेम से जीते हैं,
तो धर्म और धन दोनों एक ही पथ पर खिलते हैं।
3. अंधी भक्ति का भ्रम
आज अधिकतर लोग भक्ति कहते हैं —
अतीत की उलझनों को सुलझाना, बेहोश कर्मों को व्यवस्थित करना।
यह भक्ति नहीं है,
बल्कि अपने ही बनाए गांठों को खोलने का प्रयास है।
ऐसे साधु, संत और संस्थाएँ केवल अपनी उलझनें पालते हैं,
भीड़ जुटाते हैं, और उसी भीड़ को अंधकार में धकेलते हैं।
4. भीड़ और धर्म
भीड़ धार्मिकता का प्रमाण नहीं है।
सत्य के पास भीड़ कभी नहीं हो सकती,
क्योंकि सत्य मृत्यु है — और मृत्यु के लिए कोई भीड़ इकट्ठी नहीं होती।
भीड़ केवल कृपा, आशीर्वाद, शांति और सुख की भीख माँगती है।
भीड़ = राजनीति का आकर्षण है,
धर्म का नहीं।
5. कचरे का भराव
मनुष्य का भीतर आज धारणा, शास्त्र और अंधविश्वास का कचरा भरा हुआ है।
पंडित, पुरोहित, प्रवचन और धारावाहिक इस कचरे को खाली नहीं करते,
बल्कि और भरते हैं।
हकीकत यह है कि —
ईश्वर पाने के लिए सबसे पहले भीतर को खाली करना होगा।
6. असली त्याग
त्याग का अर्थ घर-परिवार छोड़ना नहीं है।
त्याग का असली अर्थ है —
मालिकी और अहंकार छोड़ना।
"यह मेरा है", "मैंने पाया है" —
यह सब छोड़ना ही भक्ति है।
7. दिव्य तेज का धारण
भीतर का कचरा केवल दो तरीकों से निकलता है:
या तो उसे सीधे बाहर फेंक दो (असली त्याग)।
या फिर भीतर दिव्य सत्य-तेज को धारण करो,
जिससे कचरा स्वयं बाहर हो जाए।
लेकिन यह तेज किसी से माँगा नहीं जा सकता —
न भीड़ से, न पंडित से, न संस्था से।
यह केवल भीतर प्रार्थना से उतरता है।
8. भक्ति का सार
भक्ति =
प्रेमपूर्ण कर्म।
अहंकार और मालिकी से मुक्ति।
भीतर से खाली होना।
धन और सिद्धि के संघर्ष से भक्ति पैदा नहीं होती।
भक्ति साधना का दूसरा नाम है,
जहाँ प्रेम ही कर्म बन जाता है।
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🌸 सारांश
ईश्वर पाने का मार्ग किसी मठ, संस्था या भीड़ में नहीं है।
यह केवल भीतर है —
जहाँ प्रेम है,
जहाँ अहंकार नहीं है,
जहाँ कचरा खाली है,
और जहाँ दिव्य तेज का प्रवेश होता है।