कविता: "एकतरफ़ा इश्क़ का अंजाम"
(दिल से लिखी गई है ये कविता एक अधूरे इश्क़ के नाम…)
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एक छोटा सा शहर, एक बड़ा सा ख्वाब,
ठोकरों में थे काँटे, आँखों में था आब।
उम्र थी केवल अठारह, दिल था बेक़रार,
पहुँचा शहर पढ़ने, लेकर हौसलों का संसार।
पहला दिन कॉलेज का, चेहरा थोड़ा सहमा,
पर नज़रों ने देखा, जो नज़ारा था वह बहका।
वो थी तितली सी लड़की, उम्र में थोड़ी बड़ी,
तीसरे साल की रानी, जैसे चाँदनी पड़ी।
अमीर घराने की, लहज़ा नवाब सा,
हर बात में शोखी, अंदाज़ शरारत सा।
वो लड़का तो सीधा, किताबों में डूबा,
पर उसके लिए तो दिल जैसे सब कुछ ही छूटा।
धीरे-धीरे बढ़ा दिल का धड़कता आलम,
बोल ना सका वो, डर था कहीं हो ना कोई मातम।
पर एक दिन हिम्मत कर कह डाला उसने सब,
लड़की मुस्कुराई, और कहा —
"तू मेरा क्या लगेगा अब?"
"तेरे पास है क्या? ना पैसा, ना नाम,"
"छोटे शहरों के सपने अक्सर हो जाते हैं बेकाम।"
"हम एक जैसे नहीं, छोड़ ये पागलपन,"
"मैं आगे बढ़ रही हूँ, तू मत बना बंधन।"
वो चुप था, पर अंदर से टूट गया,
जिसे पूजा दिल से, वो ही उसे लूट गया।
बातें बंद हुईं, नज़रे भी अनजान सी,
अब वो सिर्फ किताबों में नहीं, आहों में भी खोया सी।
Hostel में तंज़ कसते, लड़के हँसी उड़ाते,
"Hero बना फिरता था, अब आँसू बहाते!"
पढ़ाई में पिछड़ गया, नंबर भी गए गिर,
बाप ने डाँटा, "क्या कर रहा है, क्यों बना फ़क़ीर?"
घरवाले समझे नहीं, दोस्त सब पराए,
जिससे प्यार किया, वो भी हुए परछाए।
एक रात बंद कमरे में बस चुप्पी थी छाई,
कागज़ पर आख़िरी अल्फ़ाज़ थे:
"मैं हार गया माँ, अब ये दुनिया नहीं भाई…"
सुबह हुई तो कमरा खामोश था,
एक लड़का था, जो अब बस एक सोच था।
चिट्ठी में बस इतना लिखा था उसने,
"मैं छोटा था हाँ… पर प्यार तो बड़ा था मैंने किया था तुझसे।"
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अब कॉलेज की दीवारें भी चुप हैं,
वो लड़की भी खामोश सी हर एक वक़्त है।
कभी-कभी जब बरसात आती है ज़ोर से,
तो लगता है जैसे कोई दिल अब भी रो रहा हो शोर से।
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ये कहानी थी एकतरफ़ा प्यार की,
जिसने सिखा दिया —
इश्क़ में नहीं होता कोई छोटा या बड़ा,
बस एक दिल चाहिए… जो सच्चा धड़का। 💔