हार चुका था।
नहीं… बस यूं समझो कि मैं जीते-जी मर चुका था।
> सुबह उठता था, लेकिन जीने की कोई वजह नहीं होती थी।
फोन बजता था, लेकिन किसी से बात करने का मन नहीं होता था।
भीड़ में होता था… लेकिन खुद को सबसे अलग और अकेला महसूस करता था।
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> मैंने बहुत कुछ खोया था…
रिश्ते — जो किसी वक्त मेरी सांसों से भी ज़्यादा करीब थे।
सपने — जो मैंने आंखें बंद करके देखे थे, और खुली आंखों से बिखरते देखा।
और सबसे बड़ा नुकसान — मैंने खुद को खो दिया था।
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> एक वक्त ऐसा था… जब मैं भी हँसता था, लोगों को हँसाता था।
मुझे लगता था, मेरी भी कोई "कहानी" होगी।
लेकिन फिर ज़िंदगी ने ऐसा थप्पड़ मारा कि न आवाज़ बची, न ज़ुबान।
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> रिश्तेदारों ने कहा — “कमज़ोर है…”
दोस्त बोले — “बदला है… बददिल हो गया है…”
लेकिन किसी ने नहीं पूछा — “भाई, तू ठीक है क्या?”
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> कई रातें ऐसी आईं…
जब मैंने छत की तरफ देखा, और खुद से कहा —
“अगर मैं कल सुबह न उठूं, तो किसी को फर्क भी नहीं पड़ेगा…”
> और वहीं… वहीं पर मैं सबसे ज़्यादा टूटा था।
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> लेकिन एक दिन…
मैं यूँ ही पार्क में बैठा था — चुपचाप… थका हुआ…
तभी एक बच्चा भागते हुए आया… मेरे पास बैठ गया।
> उसकी उम्र यही कोई 5-6 साल रही होगी।
उसने मुस्कुरा कर पूछा — “भाईया, आप उदास क्यों हो?”
> मैं हँस भी नहीं पाया, बस चुप रहा।
वो बोला —
"जब मैं गिरता हूँ न, तो मम्मी कहती है — खड़ा हो जा बेटा, तू हीरो है।"
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> और यार… वो बात मेरे दिल में ऐसे धंस गई कि मैं रो पड़ा।
हां… एक 6 साल के बच्चे ने मुझे याद दिलाया —
“तू टूटा है, लेकिन तू ख़त्म नहीं हुआ।”
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> उस दिन से मैंने खुद से एक वादा किया…
"अब चाहे कोई साथ दे या ना दे — मैं खुद का साथ नहीं छोड़ूंगा।"
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🙏 और आज…
> मैं वहीं हूँ…
वही अकेला कमरा है… वही चाय का कप… वही पुराना तकिया…
लेकिन एक फर्क है — अब मैं हार मानने वाला नहीं हूँ।
> क्योंकि अब मुझे एहसास है…
"अगर तू अब भी ज़िंदा है — तो तेरे अंदर कोई बात ज़रूर बाक़ी है।"
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> सुन… तू जो ये पढ़ रहा है —
अगर तेरी भी ज़िंदगी बिखरी है…
अगर तू भी हार चुका है…
तो ये मत भूल — तू एक फाइटर है।
> तू वो किरदार है,
जिसकी कहानी अभी पूरी नहीं हुई है।
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🔚 अंत में बस इतना कहूँगा:
> “ज़िंदगी कभी आसान नहीं थी…
लेकिन तू भी तो आसान नहीं है ना…?”