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भले लोगों को दुःख क्यों उठाने पड़ते हैं?
प्रश्नकर्ता : किसी भी रोग के होने के कारण मृत्यु हो, तब लोग ऐसा कहते हैं कि पूर्वजन्म के कोई पाप बाधक हैं। यह बात सच है?
दादाश्री : हाँ, पाप से रोग होते हैं और पाप नहीं हों, तो रोग नहीं होते। तुमने किसी रोग वाले को देखा है?
प्रश्नकर्ता : मेरी माताजी अभी ही दो महीने पहले केन्सर के कारण गुज़र गई।
दादाश्री : वह तो सारा पाप कर्म के उदय से होता है। पापकर्म का उदय हो तब केन्सर होता है। यह सारा हार्ट अटेक वगैरह पाप कर्म से होते हैं। निरे पाप ही बाँधे हैं, इस काल के जीवों का धंधा ही वह, पूरा दिन पापकर्म ही करते रहते हैं। भान नहीं है इसलिए। यदि भान होता तो ऐसा नहीं करते!
प्रश्नकर्ता : उन्होंने पूरी ज़िन्दगी भक्ति की थी, तो उन्हें क्यों केन्सर हुआ?
दादाश्री : भक्ति की, उसका फल तो अभी बाद में आएगा। अगले जन्म में मिलेगा। यह पिछले जन्म का फल आज मिला और आज आप अच्छे गेहूँ बो रहे हो, तो अगले जन्म में आपको गेहूँ मिलेंगे।
प्रश्नकर्ता : कर्म के कारण रोग होते हैं, तो दवाई से कैसे मिटते हैं?
दादाश्री : हाँ। उन रोगों में वे पाप ही किए हुए हैं न, वे पाप नासमझी से किए थे, इसलिए दवाईयों से मदद मिल जाती है और हेल्प हो जाती है। जान-बूझकर किए हों, उनकी दवाई-ववाई कुछ मिलती नहीं। दवाई मिलती ही नहीं है। नासमझी से करनेवाले लोग हैं बेचारे! नासमझी से किया हुआ पाप छोड़ता नहीं है और जान-बूझकर करनेवाले को भी छोड़ता नहीं है। परन्तु नासमझीवाले को कुछ मदद मिल जाती है और जान-बूझकर करनेवाले को नहीं मिलती।