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संत जीवनियां 👇🏻 पढ़े। https://www.matrubharti.com/novels/54281/sant-jivniya-by-ankit संत धरती पर भगवान हैं। उनके लिए सारा संसार तिनके के समान है। उनके लिए सोना और पत्थर एक समान हैं। उनके लिए सुख और दुःख एक समान हैं। संत पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। ईश्वर अपनी पूर्ण महिमा, असीम शक्ति, ज्ञान और आनंद के साथ स्वयं को एक संत में प्रकट करते हैं।संत आध्यात्मिक धोबी हैं। वे भक्ति और ज्ञान का साबुन लगाते हैं और सांसारिक लोगों के पाप के दाग धोते हैं। उनकी उपस्थिति में मनुष्य पवित्र हो जाता है। जैसे ही मन किसी संत का स्मरण करता है, तुरन्त ही सारी बुरी इच्छाएँ, तुच्छ वासनाएँ, दूर हो जाती हैं। संतों के जीवन का चिंतन पवित्र संगति के समान है। उनकी शिक्षाओं का अध्ययन पवित्र संगति के समान है।
महाराणा कुंभा का गौरवशाली इतिहास।
“श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-दो।” पढ़े लिंक👇 https://www.matrubharti.com/novels/54169/shri-bappa-raval-shrankhla-by-the-bappa-rawal विवरण : बप्पा रावल, जिन्हें कालभोज के नाम से भी जाना जाता है, 8वीं शताब्दी में मेवाड़ (वर्तमान राजस्थान) के एक पराक्रमी शासक थे। उन्हें गुहिल राजवंश का संस्थापक माना जाता है और उन्हें भारत पर अरबों के आक्रमण को विफल करने का श्रेय दिया जाता है। बप्पा रावल, जिन्हें कालभोज, शिलादित्य और खुमाना के नामों से भी जाना जाता है। उपलब्धियां: अरबों के आक्रमण को विफल करना। रावलपिंडी शहर की स्थापना। गजनी तक राज्य का विस्तार आदि। बप्पा रावल को मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध शासकों में से एक माना जाता है। उनकी वीरता और पराक्रम के कारण अरबों ने लगभग 400 वर्षों तक भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया। बप्पा रावल ने अपने जीवन के अंत में संन्यास ले लिया था। कर्नल टॉड ने बाप्पा रावल के सम्बन्ध में लिखा है, “Bapp, who was the founder of a line of hundred kings, feared as a monarch, adorned as more than mortal, and according to the legend, still living, deserves to have the source of his pre-eminent fortune disclosed, which, in Mewar, it were sacrilege to doubt” (Tod, Annals, Pg. 184) इतिहासकार सी वी वैद्य लिखते हैं, “Bappa Rawal the reputed founder of the Mewar family was the Charles Martel of India against the rock of whose velour, as we have already said, the eastern tide of Arab conquest was dashed to pieces in India. Like Shivaji, Bappa rawal was an intensely religious man and he equally hated the new invaders of India who were cow-killers” (History of Medieval Hindu, Vol-II, pg. 72-73)
हिंदू राज्य कायम करने वाले योद्धा महाराणा सांगा का इतिहास। 🚩
महाराणा प्रताप सिंह के पौत्र महाराणा राज सिंह का इतिहास 🚩
श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-एक 👇 https://www.matrubharti.com/novels/53707/by-the-bappa-rawal विवरण : गुहिल या गहलौत वंश के बप्पा रावल मेवाड़ के वास्तविक संस्थापक माने जाते हैं क्योंकि मेवाड़ ने जो शक्ति, प्रसिद्धि और सम्मान प्राप्त किया वो इन्ही की देन थी। इसी राजवंश में से सिसोदिया वंश का निकास माना जाता है, जिनमें आगे चलकर महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए। बप्पा रावल इनका नाम नहीं बल्कि इनके प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर जनता ने इन्हें बाप्पा पदवी से विभूषित किया था। 712 ईस्वी में, भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ जिसमें मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण कर राजा दाहिर को हराया था। तब बप्पा रावल ने हिंदुस्तान के विविध राजाओं को एकजुट कर न केवल मुहम्मद बिन कासिम को हराया, बल्कि उसे ईरान तक खदेड़ दिया और उसके खलीफा तक पीछा किया। बप्पा रावल (कालभोजादित्य) का इतिहास जानने के लिए अवश्य पढ़ें।
असुर सम्राट “परम भागवत भक्त प्रह्लाद” का संपूर्ण इतिहास जाने👇🏻 https://www.matrubharti.com/novels/38431/param-bhagwat-prahlad-ji-by-praveen-kumrawat विवरण : भारतवर्ष के ही नहीं, सारे संसार के इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वंश यदि कोई माना जा सकता है, तो वह हमारे परम् भगवत भक्त दैत्यर्षि प्रहलाद का ही वंश है। सृष्टि के आदि से आज तक न जाने कितने वंशों का विस्तार पुराणों और इतिहासों में वर्णित है किन्तु जिस वंश में हमारे महाभागवत् का आविर्भाव हुआ है, उसकी कुछ और ही बात है। इस वंश के समान महत्त्व रखने वाला अब तक कोई दूसरा वंश नहीं हुआ और विश्वास है कि भविष्य में भी ऐसा कोई वंश कदाचित् न हो। प्रह्लाद जी ने अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का सामना किया और भगवान विष्णु में अपनी अटूट भक्ति के कारण वे प्रसिद्ध हुए। उनके पुत्र विरोचन और पौत्र राजा बलि भी महान राजा और भक्त हुए, जिन्होंने अपने-अपने समय में धर्म और न्याय की स्थापना की। इसलिए, प्रह्लाद जी और उनके वंशजों की महानता उनके भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति, धर्म और न्याय के प्रति समर्पण और अपने-अपने समय में प्रजा के कल्याण के लिए किए गए कार्यों के कारण है।
Book Name: शिवाजी महाराज द ग्रेटेस्ट https://www.matrubharti.com/novels/38913/shivaji-maharaj-the-greatest-by-praveen-kumrawat छत्रपति शिवाजी महाराज अप्रतिम थे। उनका पराक्रम, कूटनीति, दूरदृष्टि, साहस व प्रजा के प्रति स्नेहभाव अद्वितीय है। सैन्य-प्रबंधन, रक्षा-नीति, अर्थशास्त्र, विदेश-नीति, वित्त, प्रबंधन— सभी क्षेत्रों में उनकी अपूर्व दूरदृष्टि थी, जिस कारण वे अपने समकालीन शासकों से सदैव आगे रहे। राष्ट्रप्रेम से अनुप्राणित उनका जीवन सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है और अनुकरणीय भी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘हिंदवी स्वराज’ की अवधारणा दी; अपनी अतुलनीय निर्णय-क्षमता और सूझबूझ व अविजित पराक्रम के बल पर मुगल आक्रांताओं के घमंड को चूर-चूर कर दिया; अपनी लोकोपयोगी नीतियों से जनकल्याण किया। शिवाजी महाराज की तुलना सिकंदर, सीजर, हन्नीबल, आटीला आदि शासकों से की जाती है। यह पुस्तक उस अपराजेय योद्धा, कुशल संगठक, नीति-निर्धारक व योजनाकार की गौरवगाथा है, जो उनके गुणों को ग्राह्य करने के लिए प्रेरित करेगी।
'नाम जप साधना' की संपूर्ण जानकारी। 👇🏻 https://www.matrubharti.com/novels/41993/naam-jap-sadhna-by-charu-mittal Description: प्रत्येक युग की साधना निश्चित है। जैसे : सत्ययुग के लिए – ज्ञानयोग त्रेतायुग के लिए – ध्यानयोग, द्वापरयुग के लिए – यज्ञ, कर्मकांड, (पूजा-अर्चना) कलियुग के लिए – नामजप कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन नामजप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत का कथन है : यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है कि सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग पहले के इन युगों में भगवान के ध्यान द्वारा, यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा तथा पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, वह पुण्यफल कलियुग में केवल श्रीहरि के नाम-संकीर्तन से ही प्राप्त हो जाता है। कृष्णयजुर्वेदीय कलिसंतरणोपनिषद मेें लिखा है कि द्वापरयुग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा : आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। भगवान चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि कलियुग में केवल हरिनाम ही हमारा उद्धार कर सकता है। यही बात नानक देवजी ने भी कही है, ‘नानक दुखिया सब संसार, ओही सुखिया जो नामाधार।’ रामचरितमानस में भी यही लिखा है, ‘कलियुग केवल नाम आधारा। सुमिरि-सुमिरि नर उतरहीं पारा ॥’
बुक नेम “मानव धर्म” 👇 https://www.matrubharti.com/book/19943935/manav-dharm-3 मनुष्य जीवन का ध्येय क्या है? इंसान पैदा होता है तब से ही संसार चक्र में फँसकर लोगो के कहे अनुसार करता है। स्कूल-कॉलेज की पढाई करता है, नौकरी या धंधा करता है, शादी करके बच्चे पैदा करता है, और बूढ़े होने पर मर जाता है। तो क्या यही हमारे जीवन का मूल उद्शेय है? परम पूज्य दादा भगवान, मनुष्य जन्म को 4 गतियों का जंक्शन बताते है जहाँ से, देवगति, जानवर गति या नर्कगति में जाने का रास्ता खुला होता है। जिस प्रकार के बीज डाले हो और जिन कारणों का सेवन किया हो, उस गति में आगे जाना पड़ता है। तो, इन फेरो से आखिर हमें मुक्ति कब मिलेगी? दादाजी बताते है कि, मानवता या ‘मानवधर्म’ की सबसे बड़ी परिभाषा ही यह है कि, अगर कोई तुम्हें दुःख दे और तुम्हें अच्छा ना लगे, तो दूसरों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। अगले जन्म में अगर नर्कगति या जानवर गति में नहीं जाना हो तो, मानवधर्म का हमेशा ही पालन करना चाहिए। इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने, यह किताब पढ़े और अपना मनुष्यजीवन सार्थक बनाइये। Disha jain प्रोफ़ाइल लिंक— https://www.matrubharti.com/dishajain221416
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