Hindi Quote in Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

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📘 काठगोदाम की गर्मियाँ — कहानी जो रह जाती है

जब एक शहर की लड़की पहाड़ों से टकराती है, तब नज़ारे ही नहीं, दिल भी बदल जाते हैं। “काठगोदाम की गर्मियाँ” सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि रिश्तों, यादों और अधूरी बातों की रूहानी दास्तान है।

यह उपन्यास आपको उन गर्मियों में ले जाता है जहाँ न मैट्रो की भीड़ थी, न कॉल ड्रॉप की चिंता — सिर्फ कुछ शामें थीं, कुछ मैगी प्वाइंट्स, हल्दी के रंग, विदाई के आँसू और बहुत सारी अनकही बातें।

कर्नका और रोहन के बीच पनपता रिश्ता — कहीं मीठा, कहीं उलझा, कहीं चुप — आपको खुद के पहले प्यार की याद दिलाएगा। पहाड़ की हवा, रिश्तों की खामोशी, और संवादों की गहराई इस किताब की सबसे बड़ी ताक़त है।

धीरेंद्र सिंह बिष्ट की लेखनी इतनी सहज और भावनात्मक है कि पढ़ते-पढ़ते आप भूल जाते हैं कि ये कल्पना है — लगता है जैसे आप भी वहीं हैं, भीमताल की खामोशी में, एक रिश्ते के इंतज़ार में।



“कुछ रिश्तों को वक़्त समझा ही नहीं पाता…
वो पहाड़ों में धड़कते हैं, खामोशियों में जीते हैं —
और हर गर्मी की दोपहर में लौट आते हैं…”

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