💔 कर्ज़ की ज़ंजीर 💔
कभी था सपना, उड़ने का इरादा,
माँ-बाप की आंखों में, था एक वादा।
नौकरी मिली तो सोचा सब बदल जाएगा,
पर ज़माना कुछ और ही सिखाएगा।
कर्ज़ लिया था उम्मीदों के संग,
EMI बन गई अब दिल की जंग।
फोन की घंटियाँ डराने लगीं,
"पैसे दो!" आवाज़ें सताने लगीं।
रातों की नींद, दिन का सुकून,
सब छीन ले गया वो कर्ज़ का जुनून।
मगर ये कहानी यहीं खत्म नहीं,
अभी बाकी है लड़ाई, हार नहीं मानी कहीं।
एक दिन आएगा जब सब चुका दूँगा,
खुद को फिर से नया बना लूंगा।
_बी.डी.ठाकोर