चाय और तुम... रोज़ की तरह आज भी याद आए।
पानी जैसे उबलता है, वैसे ही दिल धड़क उठा।
एक चुप सी होती है चाय में, बिल्कुल तुम्हारी तरह।
तुम पास नहीं होते, फिर भी कप दो बनते हैं।
एक मैं पीता हूँ...
और एक में तुम्हारी मुस्कान घोल देता हूँ।
बारिश की बूँदें गिरती हैं,
और तुम्हारी आवाज़ की गूँज सुनाई देती है।
चाय की वाफ़ में अक्सर एक चेहरा उभरता है—
वही जो अब सिर्फ ख़्वाबों में आता है।