"कविता" : (यारी की चिरागी)
चाँदी सी रातें, दीपक का उजाला,
कच्चे आँगन में बैठी वो महफ़िल निराला।
माटी की खुशबू, खामोश हवाएँ,
और दो यारों की हँसी की सदाएँ।
"तू है तो क्या ग़म है," कह कर मुस्काना,
वो गली के मोड़ पर तेरा मेरा ठिकाना।
लाठी लिए बुढ़ा वक़्त भी मुस्काए,
जब दोस्ती की राहों में फूल बिछाए।
> तू मेरा यार है, तू मेरा फ़क्र है,
हर दर्द में तू ही मेरा ज़िक्र है।
नफ़्स-नफ़्स में बसी है तेरी ख़ुशबू,
दोस्ती में तेरा ही असर है।
>बचपन की वो मिट्टी, वो खेल, वो छुपन-छुपाई,
तू साथ था तो हर बात थी भाई।
अब वक़्त के परिंदे उड़ चले हैं दूर,
मगर दिल में अब भी तेरा नाम है हज़ूर।
दोस्ती ना वक़्त मांगे, ना हालत की चाह,
ये तो वो रिश्ता है जो बस करे राह।
न रहे तू पास, न सुन सकूं तेरा स्वर,
फिर भी तेरे बिना अधूरा है मेरा ये सफर।