💔 "आख़िरी मुलाक़ात" 💔
वो जुलाई की एक शाम थी, जब शहर की सड़कों पर बारिश की बूँदें झूम-झूम कर गिर रही थीं। लोग भीगने से बचने के लिए दौड़ रहे थे, लेकिन आरव छतरी के बिना ही चलता जा रहा था — जैसे उसे किसी चीज़ की परवाह ही न हो।
उसे सिर्फ़ एक जगह पहुँचना था — वही पुराना कॉफ़ी हाउस, जहाँ वो और सिया हर शुक्रवार मिला करते थे।
दो साल पहले, इसी जगह पर उनकी पहली मुलाक़ात हुई थी। सिया की मुस्कान, उसकी आंखों की गहराई और वो कॉफ़ी का छोटा कप — सब कुछ अब आरव की यादों का हिस्सा बन चुका था।
सिया अब इस शहर में नहीं थी। उसे अपने करियर के लिए मुंबई जाना पड़ा था। उन्होंने वादा किया था कि दूर रहकर भी उनका प्यार कम नहीं होगा। लेकिन धीरे-धीरे फोन कॉल्स कम होने लगे, मैसेज जवाब का इंतज़ार करने लगे, और एक दिन... सब कुछ ख़ामोश हो गया।
आरव हर शुक्रवार वहीं आता रहा, उसी कोने की टेबल पर बैठा — दो कप कॉफ़ी मंगवाकर। एक अपने लिए, एक उसके लिए। जैसे वो आज भी यहीं हो।
आज बारिश कुछ अलग सी थी। भीगती हवा में कोई पुरानी महक थी — सिया की ख़ुशबू जैसे लौट आई हो।
वो जैसे ही टेबल तक पहुँचा, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
सिया वही बैठी थी। वही हलकी नीली शॉल, वही मुस्कान... पर आंखों में कुछ और था। इंतज़ार, पछतावा और प्यार — तीनों एक साथ।
“तुम अब भी आते हो?” उसने पूछा।
आरव कुछ नहीं बोला। बस हल्के से मुस्कुरा दिया।
सिया की आंखें भर आईं, “मैं बहुत कुछ कहने आई थी... लेकिन अब लग रहा है, शायद कुछ कहना ज़रूरी नहीं।”
आरव ने उसका हाथ थाम लिया — वो हाथ जो दो साल पहले छूट गया था।
“प्यार अगर सच्चा हो, तो वो लौट आता है... तुम्हारी तरह,” उसने धीरे से कहा।
उस दिन, बारिश सिर्फ़ मौसम नहीं थी। वो दोनों के बीच जमी हुई चुप्पियों को पिघला रही थी। दो टूटे दिल फिर से जुड़ रहे थे।
“आख़िरी मुलाक़ात” एक नई शुरुआत बन गई।