ख्वाहिश -ए- जिन्दगी...
चाहतों की होड़, अब जिन्दगी को उलझाने लगी है।
एक को पुरा किया नहीं, की दुसरी हाथ उठाने लगी है।
ख्वाहिशों में भी ख्वाहिशें, खुद को बड़ी बताने लगी है।
ये दौर- ए- जिन्दगी है साहब,
इसमें सिर्फ आपके साथ ख्वाहिशें क़दम बढ़ाने लगी है।
बचपन की ख्वाहिशें, अब खुदको छोटी बताने लगी है।
लड़कपन की ख्वाहिशें, अब शौक़ को अपनाने लगी है।
जिन्दगी के मुकाम में, एक दौर ये भी आया है।
जब अपनी इच्छाएं छोड़, हमने अपने परिवार की ख्वाहिशों को अपनाया है।
ये ख्वाहिश -ए- जिन्दगी जाने कब ठहेर पाएंगी।
शाय़द यही है वो, जो हमारा आखिर तक साथ निभाएंगी।
छुटते इन सांसों में भी, एक चाहत रहे जाएंगी।
जिसे ना पा सके उसे पाने की, जो मिला उसे ठीक से ना अपनाने की तमन्ना तो रहे ही जाएंगी।
By. Santoshi__Katha ✨