उसकी भीगी आंखों ने बता दिया कुछ ऐसा
अंतिम डग भरते डगमगाने लगे उसके पैर ।
आंखों में आसूं थे, दिल में निराशा छाई थी
जीने से बेहतर है, मरने की कसम खाई थी।
हर जगह देखी उसने वासना भरी निगाहें
मर्दों की नजर में, औरत कोई खिलौना।
टूट जाती है औरत,जब ऐसा देखा करतीं हैं
टूटे हुए खिलौने की तरह इस्तेमाल की जाती है।
अंतिम डग कहां चलूं, यही सोचते रह जाती है
ऐसे ही जिंदगी, टूटता हुआ खिलौना बन जाती है।
- कौशिक दवे
- Kaushik Dave