कभी कभी सोचती हूं
मैं बुद्ध हो जाऊं
सब मोह छोड़
एकांत बस जाऊं
दुनियां की माया
सब त्याग कर जहां
शायद मिल जाए
वो आनंद जो कहीं
ना मिल सका ,
किंतु मेरे लिए
विचारों में भी ये
असंभव था... क्योंकि
मैं यशोधरा थी, बुद्ध नहीं,
उन विचारों से भी
अधिक महत्वपूर्ण
उसके लिए दायित्व है
जिसमें अधिकांश स्त्री
स्वतः ही बंध जाती हैं,
वो रात को सोता शिशु
छोड़कर नहीं जा सकतीं ,
इसीलिए कभी कभी लगता है
बुद्ध होना आसान हो सकता है
परंतु स्त्री होना नहीं...।