जब कुछ करना हैं ये ठान लिया,
आलस्य को जीवन से त्याग दिया,
कर जिद्द अपने मंजिल पाने कि,
कम उम्र में घर से निकल पड़ा।
हैं नींद चैन को त्याग दिया,
जो करना हैं पहचान लिया,
अब नींद से नाता तोड़ दिया,
मेहनत से नाता जोड़ लिया।
अब नींद मुझे उसी दिन आएगी,
जब मंजिल खुद मुझे बुलाएगी,
अब रातों में बिस्तर त्याग दिया,
इन रातों को ही अपना मान लिया।
फिर आंधी आए या तूफान चले,
रास्ते में भले रुकावटें लाख आए,
जब निकल पड़े मंजिल कि तरफ,
तो चलता जा जहां तक राह चले।
- Abhishek Mishra