हमारी जिन्दगी में कुछ तकलीफें ऐसी होती है
जिसे हम किसीसे कहना नही चाहते
सिर्फ हम खामोश हो जाते है
हम घुटने रहते है सिर्फ
29 मई 2023 को ही मैनें
अपने पापा को हॉस्पिटल मे जबरदस्ती एडमिट करवा
और वो फिर कभी लौट कर नही आए
मैनें उस इंसान को अपनी आंखों ओझल होते देखा
जिसे मैं कभी नही खोना चाहती थी
जो मेरी हिम्मत थे
आज फिर वही तारीख
मैनें कभी नही सोचा था
मुझे लगा था इलाज होगा उनका वो ठीक हो जाएगा
अपने लिए हुए फैसले ही मुझे बहुत तकलीफ दे रहे है
काश मैं उन्हें हॉस्पिटल न ले जाती
उन्हें जो तकलीफें वहां झेलनी पड़ी
वो न होता
शायद तब वो हमें यूँ अकेला छोड़कर न जाते
इतने सवाल है खुद से कि
घुटन से मर जाने को जी चाहता है
रो लेना चाहती हूँ खूब
मगर रो भी नही सकती
घरवालों को कौन सम्हालेगा
बहुत कुछ है कहने को पर अब चुप ही रहना है
सिर्फ चुप
सिर्फ चुप