क्यों बंद कर रखा है खुद को सब बेडियो में ?
तोड आज सारी जंजीरे और लगा दे सपनों के पंख तू..
गर ना तोड़ सके पिंजरा तो क्या हुआ ?
हिम्मत इतनी बाढा की पिंजर लिए ही उड़ जा तू..
सपने तेरे हैं फिर क्यों रखोगीे उन पर लगाम ?
सपनों की भी लगाम किसी और के हाथों में क्यों दे तू ?
वैसे तो तरसती रह जाएगी एक दिन की छुट्टी को,,
खुद के लिए भी फुर्सत के कुछ पल चुरा लिया कर तू..
कहेंगे तेरे ना होने से कुछ फर्क ना पड़ेगा,,
फिर भी उसे तेरे बिना जीने का फर्क दीखा दे तू..
छोड़ पीछे अब ऐसी खोखलीे सोच के मानव को,,
जो बजाते रहते हैं हमेशा झूठी शान की धुन को..
तो किस विचार में है तोड़ लगाम आज की नारी है तू,,
और अपने सपनों की सतरंगी दुनिया सजा दे तू..
अमी....