घोर कलियुग आ चुका
इंसान अपने अंदर के इंसान को मार चुका
हर चीज़ बस अपने लिए पाना चाहता है
अपने अंदर के हबान को अब दूसरों से मिलना चाहता है
दूसरों को उनके रास्ते से हटाना चाहता है
हाथ मिलाता है और पीठ पीछे कुछ और बाताता है
घोर कलियुग आ चुका
इंसान अब इंसान को ही खा चुका
उसके भीतर ईर्ष्या की गर्मी है
सब चीज़ अपने लिए करनी है
सब चीज़ अपने लिए करते करते अपनी इंसानियत को मरते हुए
ये युग आ गया,ईर्ष्या की गर्मी ज़्यादा है,
घोर कलियुग आ गया
-रूपेश-