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Rupesh

Rupesh

@rupesh336601


चारों तरफ अपनी ममता बिखेरे हुऐ
कभी चाँद जैसी नज़र आती है।
कभी अपनी रौशनी मे सारे दुख समा लेती है ।
यह माँ ही है
जो अपने से पहले हमें सब कुछ दिलवाती है।
हमारी हर खुशी में खुद भी हँसती, मुस्काती है।
माँ ही है जो चाँद जैसी नज़र आती है
और चारों ओर अपनी ममता की छाया फैलाती है।
।।रूपेश।।

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मुझे हर जगह तू दिखती है,
जब मैं घर से निकलता हूँ,
और एक सफर में खो जाता हूँ —
तो हर एक लड़की में
मुझे तू दिखीं देती है।

सोचता हूँ ये फसाना है ,या हकीकत
क्योंकि मुझे हकीकत में भी तू दिखती है।
।रुपेश।

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ना लिखूं किस्मत अपनी,
ना उठाऊं क़लम अपने हक़ के लिए।
हक़ तो हर कोई छीन आ जाता है,
बस हम नहीं छीनते किसी का, अपने मतलब के लिए।

।रूपेश।

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सड़क पर पड़ी उस लाश को हाथ लगाया, पर उसने अपना धर्म नहीं बताया" —
।रुपेश।

जब मौत जागने आती है।
अपना साथ बहुत से फरिश्ते लाती है।
फरिश्ते अक्सर जगते है ,एक गहरे अंधेरे में ले जाता है।
अंधेरे में हल्की-हल्की साँसें चलती हैं।
मौत कभी किसी में भेद नहीं करती है।
(रुपेश )

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ना हमदर्दी दिखा मुझे ।
ना फिर से गले लगा मुझे ।
जाने वाले जा चूका है तू ।
अब फिर से नाम लेकर ना बुला मुझे।
(रूपेश)

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तेरी सोच में खोया रहता हूँ
अक्सर जब तू सच में मिलती है
तो सोचता हूँ — ये हकीकत है या मेरा सपना
अगर हकीकत भी है
तो हर एक पल कुछ सोच
अक्सर जैसे शब्दों में गवाँ देता हूँ।
तेरी सोच फिर से मुझे बाँध लेती है
और मैं फिर खुद को तुझमें ही पा लेता हूँ।

-रूपेश-

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घोर कलियुग आ चुका
इंसान अपने अंदर के इंसान को मार चुका
हर चीज़ बस अपने लिए पाना चाहता है
अपने अंदर के हबान को अब दूसरों से मिलना चाहता है

दूसरों को उनके रास्ते से हटाना चाहता है
हाथ मिलाता है और पीठ पीछे कुछ और बाताता है
घोर कलियुग आ चुका

इंसान अब इंसान को ही खा चुका
उसके भीतर ईर्ष्या की गर्मी है
सब चीज़ अपने लिए करनी है
सब चीज़ अपने लिए करते करते अपनी इंसानियत को मरते हुए
ये युग आ गया,ईर्ष्या की गर्मी ज़्यादा है,
घोर कलियुग आ गया
-रूपेश-

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