आज के जमाने में
न पति परमेश्वर होता है
न मां बाप भगवान
हे स्त्री
तू उठ और पूरे कर अपने ख्वाब
सजा सुरमे की जगह रक्त अपनी आंखों में
ओढ़ ले चट्टानों सा हौसला
क्योंकि अब तुझे नहीं झुकना किसी तूफान के आगे
ना अबला, ना सहमी, ना किसी की दासी,
तू खुद में पूर्ण, तू खुद एक काशी,
हर बंधन को कर तू राख,
लहू से सींच अपने पथ को,
हर कांटे को बना तू अपना ताज,
दुनिया चाहे जो भी कहे,
तू खुद लिख अपनी आवाज़।
ना मांग तू अब किसी से इज़ाज़त,
तेरा हक़ है उड़ान, तेरी है विरासत।
घूंघट की ओट से अब देखना नहीं,
तू सूरज बन, अंधेरों से डरना नहीं।
तेरे हर आँसू ने एक इंक़लाब लिखा है,
तेरी खामोशी ने भी बहुत हिसाब लिखा है।
अब वक़्त है कि तू अपना नाम करे,
हर फिज़ा में अपनी पहचान भरे।
चल, रच इतिहास अपने कदमों के निशां से,
इस दुनिया को बदल दे अपनी मुस्कान से।
अब तुझमें कोई कमी नहीं, कोई सवाल नहीं,
तू जवाब है, तू क्रांति है — तू कमाल है
तू सिर्फ़ एक स्त्री नहीं, तू सृजन है, तू संहार है,
जो तुझसे टकराए, समझ ले—वो खुद ही हार है।