आज की जनरेशन में कई बार ऐसा लगता है कि बच्चों को माँ-बाप समझ ही नहीं पाते। पहले जहाँ परिवारों में रिश्तों की गहरी समझ और विश्वास होता था, वहीं अब वह सब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। बच्चों को हमेशा यह लगता है कि कोई उनकी सोच और उनकी भावनाओं को समझने की कोई कोशिश ही नहीं कर रहा है।
माँ-बाप की नज़रें अब केवल बच्चों के रिजल्ट्स और उनके बाहर के नजरिए पर टिक गई हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बच्चों की दुनिया सिर्फ पढ़ाई, कैरियर और पैसों से जुड़ी नहीं है। बच्चों के पास भी अपनी इच्छाएँ और समस्याएँ होती हैं, जिनसे वह अकेले ही जूझते हैं। लेकिन माँ-बाप को उनकी मानसिक स्थिति या भावनाओं की अहमियत कभी समझ में नहीं आती।
आजकल के बच्चे खुद को अकेला महसूस करने लगे हैं, क्योंकि वे जिस दुनिया में जीते हैं, वह बहुत अलग है, social media, दबाव, और fast लाइफ ने उन्हें अपनी बात कहने का कोई मौका नहीं दिया। माँ-बाप को लगता है कि वे सही रास्ते पर हैं, लेकिन अक्सर यह भूल जाते हैं कि बच्चों का मन और उनके विचार भी महत्वपूर्ण हैं।
माँ-बाप का प्यार हमेशा बच्चों के लिए होता है, लेकिन कभी-कभी यह बिना समझे, बिना पूछे दबाव बन सकता है। वे यह नहीं समझ पाते कि हर बच्चे की अपनी एक अलग यात्रा होती है, और उसे पूरी तरह से जानने और समझने के लिए समय और धैर्य की जरूरत होती है।
आज की पीढ़ी और उनके माता-पिता के बीच की इस असहमति और गहरी खाई को पाटने के लिए दोनों को एक-दूसरे के नज़रिए को समझने की जरूरत है। बच्चों को सिर्फ अपने फैसले नहीं, बल्कि उनके emotions को भी समझना जरूरी है, ताकि सही मायनों में परिवार एक दूसरे का सहारा बन सके।
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