बेटी घर की भाग्य विधाता.......
बेटी घर की भाग्य विधाता।
मात-पिता की आश्रय दाता।।
परिवारों में सेतु बनाती।
सदियों से जोड़े यह नाता।।
ससुरालय में कुछ को आकर।
घर-परिवार नहीं है भाता।।
अपना और पराया कहकर।
भेदभाव में मन-भरमाता।।
अपने-तुपने के झगड़े में।
याद-मायका सदा रुलाता।।
बचपन भर झूले डोली में।
दूजा डोली में घर लाता।।
दोनों घर के मात-पिता सम।
जिसने समझा वह सुख पाता।।
गलत सोच में जीना जीवन।
सदा उमर भर ठोकर खाता।।
धरती पर ही स्वर्ग-नरक है।
कर्मों का प्रतिफल मिल जाता।।
मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*