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मैं अपने किरदार के कई हिस्से रखती हूं…
अपनी आंखों में कभी खामोश समंदर रखती हूं…
कभी इन आंखों में मनमौजी मौजों-सी रवानी लिए फिरती हूं…
मैं अपनी किरदार के एक हिस्से में कुछ मनमौजी-सी होती हूं…!
इस दुनिया को देख कभी उलझती कभी सुलझती हूं…
कभी मैं चुप-सी रहती हूं…
कभी बड़बोली-सी होती हूं…
मैं अपने किरदार का एक हिस्सा सिर्फ अपने ज़हन में रखती हूं…!
कभी मैं चंचल पवन-सी फिजाओं में बहती हूं…
कभी मैं खामोशी -सी दरख्तों पर ठहरतीं हूं…
मैं अपने किरदार के एक हिस्से में कुछ खामोशी भी रखती हूं…!
हां…
मैं अपने किरदार के कई हिस्से रखती हूं…!
कभी चंचल कभी शांत-सी होती हूं…!
कभी-कभी बचपन भी जीती हूं…!
मैं अपने किरदार का एक हिस्सा सिर्फ अपने ज़हन में रखती हूं…!
-Ankita Gupta