जोरू का गुलाम
राधा आटा गूंधते गूंधते बडबडा रही थी " पता नहीं क्या ज्योतिष पढ रखी है इस आदमी ने हर बात झट से मान जाता है । उसका भी मन करता है रूठने का , और फिर थोडी नानुकुर के बाद मान जाने का । अभी कल कहा सर में दर्द है तो फौरन से झाडू पौंछा बरतन सब करके बैठ गया सर दबाने । आराम पाकर थोड़ा आंखें क्या बंद की, लगा पैर दबाने । पता नहीं इस आदमी में स्वाभिमान नाम की कोई चीज है कि नहीं । पिताजी ने न जाने किस लल्लू को पल्लू में बांध दिया । "
तभी आहट हुई तो देखा विनोद बेसिन पर हाथ धो रहे थे । उसने पूछा " सब्जी नहीं लाये क्या । "
विनोद झुंझलाकर बाहर की तरफ जाते हुए बोला " जोरू का गुलाम समझ रखा है क्या , सामने सडक पर तो मिलती है खुद क्यों नहीं ले आती । "
राधा को तो मन की मुराद मिल गई पल्लू कमर में खोंसकर अपने डायलाग सोचते सोचते वो विनोद के पीछे लपकी । तभी उसके पैरों से कुछ टकराया और वो धडाम से गिर पडी , देखा तो सब्जियां थैले से बाहर निकल कर किचन में टहल रही थी । उनको पकड पकडकर उसने पुनः थैले में बंद करना शुरु कर दिया और मन ही मन बडबडाने लगी " इस आदमी पर न पक्का किसी भूत प्रेत का साया है मेरे मन की सब बात जान जाता है आज ही माँ को फोन करके कहती हूं मसान वाले बाबा से भभूति लेकर भिजवा दे । "
उधर से विनोद चिल्लाया " अरे क्या टूटा । "
गुस्से में ये भी चिल्लाई " मेरा भ्रम । "
Kumar Gourav