इंसान मिट्टी का पुतला था—
इसलिए टूटना उसकी प्रकृति थी।
इंसान गलतियों का पुतला था—
इसलिए सीखना उसकी यात्रा थी।
पर समय ने उसे
समाज, धर्म और जाति की कठपुतली बना दिया।
अब वह स्वयं नहीं रहता,
बल्कि दूसरों की कल्पनाओं का प्रतिबिंब बनकर जीता है।
कठपुतली वही नहीं होती
जिसके धागे दिखाई दें—
कठपुतली वह है
जो अपने धागों को पहचान भी न पाए।
और यही मनुष्य का सबसे बड़ा संकट है कि
वह स्वतंत्र पैदा होता है,
पर बंधनों में मर जाता है।
— ArUu ✍️