मायूसी
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मायूसी महज एक विचार, एक भाव है
हमारी नकारात्मकता और आत्मिक कमजोरी है,
खुद पर अविश्वास मिश्रित डर है।
मायूसी को हम-आप बढ़ावा देते हैं
उसे अपने सिर पर बिठाते हैं,
उसके स्वागत में पलक पाँवड़े बिछाए देते हैं
खुद पर हावी होने का अवसर देते हैं।
वरना मायूसी इतनी मजबूत नहीं है
जो हम पर भारी पड़ जाये,
और खूँटा गाड़ कर बैठ जाये।
यदि हम उसे अवसर ही न दें तो
मायूसी खुद मायूस होकर वापस लौट जाएगी।
अच्छा है मायूसी को भाव देना बंद कीजिए
अपने आप पर इतना तो विश्वास कीजिए,
मायूसी यदि हठधर्मी पर उतर आए
तो उससे दो दो हाथ करने का हौसला कीजिए।
मायूसी आपसे है, आप मायूसी से नहीं
यह भाव निज मन में जगाए रखें,
तब मायूसी खुद-बखुद मायूस हो जायेगी
जब उसकी दाल ही नहीं गल पायेगी,
तब वो हमारी आपकी बगलगीर बनने की
भला सोच ही कब पायेगी?
हमारे आपके पास कौन सा मुँह लेकर आयेगी,
मजबूरी में ही सही दूर ही रहेगी
और जैसे तैसे अपना मुँह ही तो छिपायेगी,
मगर आसपास नजर नहीं आयेगी।
सुधीर श्रीवास्तव