बिखेरने दो बचपन को अपने खेल खिलौने
करने दो इन्हें घर को थोड़ा अस्त व्यस्त
छापने दो इन्हें दीवारों पर अपनी उंगलियों की छाप
और भरने दो उनमें अपने मनपसंद रंग।
बाद में व्यस्त हो जाएंगे यह भी अपनी दुनियादारी में
बढ़ जाएगा इनके कंधों पर भी जिम्मेदारियों का बोझ
नीड़ छोड़ उड़ जाएंगे ये भी अपने सपने पूरे करने ।
फिर पीछे रह जाएगा सिमटा, तरतीब सा सजा यह घर
सूनी सी मौन साधे खड़ी ये चकाचक सफेद दीवारें
बस बिखरी रह जाएंगी यहां, उनकी अनगिनत अनमोल यादें।।
सरोज प्रजापति ✍️
- Saroj Prajapati