... अरे नहीं ।
ऐसी कोई बात नहीं है,
वो न हम ट्रेन में सफर कर रहे है।
तो नींद लग गई होगी तो ,
फोन नहीं उठा पाया तुम्हारा,
जी ठीक..कहते हुए,
अभिजीत ने कैलाश से कहा,
नीरज जग जाए तो उसे बधाई दें ।
और समय मिले तो फोन करने जरूर कहे।
ठीक है।
कहते हुए कैलाश ने फोन काट दिया।
अभिजीत जो ,कि नीरज की कामयाबी की खुशी में शामिल होकर उसे बधाई देना चाह रहा था,
मगर,दूसरी तरफ नीरज उसका फोन नहीं उठा रहा था।
इस व्यवहार से ,
अभिजीत के मन में यह सवाल बार बार उसे परेशान किए जा रहा था,
की सफलता आदमी की इतना बदल देती है।
जो कि,अब वह कुछ खास न रहा तो ,उससे दरकिनार कर लिया जाए।
बड़े ही बोझिल मन से ,
अभिजीत ने खुद का संभाला ..खेती के काम में खुद को जुटा दिया।
मगर इसके मन से नीरज का इस तरह से बदल जाना ,
सह नहीं पा रहा था।
और हो भी न क्यों।
आखिर कर उसकी मेहनत हो रंग लाई थी।
सरकारी नौकर करने वाले और खेत खलिहान में काम करने वाले में अंतर तो रहेगा ही,
यह बात तो अप्रत्यक्ष तरीके से नीरज दिखा रहा था।
शायद हां।
🙂 किस्से,कुछ अधूरे ,
कुछ सच्चे