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स्वयं की खोज
मैं कहती हूँ –
समाज बदलना है, दुनिया बदलनी है,
पर रुककर सोचती हूँ –
क्या मैं जानती हूँ कि मैं कौन हूँ?
बिना खुद को समझे,
कैसे करूँ बदलाव की बातें?
जब आईना ही धुंधला हो,
तो तस्वीर साफ़ कैसे होगी?
पहले मुझे खुद को पहचानना होगा –
मेरे डर, मेरी कमज़ोरियाँ,
मेरे सपने और मेरी शक्ति।
मुझे ढूँढ़ना होगा
मेरे भीतर की उस आवाज़ को,
जो सच्चाई की गवाही देती है।
दुनिया बदलने की शुरुआत
कभी बाहर से नहीं होती,
वह जन्म लेती है भीतर से,
जब इंसान खुद बदल जाता है।
जब मैं खुद को जान लूँगी,
अपने भीतर का सच पा लूँगी,
तब मेरी हर साँस, हर विचार
समाज को नया रंग देगा।
बदलाव की पहली चिंगारी
हमेशा भीतर से जलती है—
और वही चिंगारी
दुनिया को उजाला देती है।
यही है असली राह,
यही है सच्ची खोज—
पहले स्वयं को बदलो,
फिर दुनिया खुद बदल जाएगी।