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✨ मीरा और रविदास – भक्ति पद
मीरा ने तोड़ी जाति-धर्म की सब दीवार,
संसार बंधन छोड़, बना लिया प्रेम का संसार।
राजमहल की शोभा त्यागी, सिंहासन भी छूट गया,
गिरधर गोपाल के चरणों में जीवन का फूल खिला।
गुरु रविदास के चरणों में पाया भक्ति का ज्ञान,
“मन चंगा तो कठौती में गंगा” – यही उनका विधान।
मीरा ने माना यह वाणी, छोड़ दिया अहंकार,
सादगी, भक्ति और प्रेम ही किया जीवन का श्रृंगार।
परिवार जग ने समझाया – लौकिक धर्म निभाओ,
पर मीरा ने हँसकर कहा – मैं तो गिरधर को चाहूँ।
विवाह जगत से हो न सका, प्रेम रहा अनूठा,
प्रेम-योगिनी बन मीरा चली कृष्ण-मार्ग अनूठा।
साँवरिया ही जीवन-संग, साँवरिया ही प्राण,
राज-पाट सब त्यागकर किया कृष्ण को दान।
नारी की मर्यादा तोड़ी, जग को दिया संदेश,
भक्ति का है मार्ग सच्चा, प्रेम ही ईश्वर देश।
आज भी गूँज रही है मीरा की मधुर तान,
रविदास के उपदेश से चमका उसका जीवन-प्राण।
भक्ति, समानता और प्रेम की अमर मिसाल बनी,
मीरा बाई जन-जन के हृदय में आज भी जगी।