Hindi Quote in Poem by Shivam Kumar Pandey

Poem quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

इस सामग्री को मैंने chatgpt(A.i.) की मदद से तैयार किया है । जो की मेरी खुद की मौलिक(original) सामग्री है ।

श्रीरामचरितमानस,भाग-1
।। बालकाण्ड ।।


वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि ।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥



शब्दार्थ:

1. वर्णानामर्थसंघानां – वर्णों के अर्थ और उनके समूहों के

2. रसानां – रसों के

3. छन्दसामपि – छन्दों के भी

4. मङ्गलानां – मंगलों के

5. च – और

6. कर्त्तारौ – कर्ता (निर्माता) दोनों

7. वन्दे – मैं वंदना करता हूँ

8. वाणीविनायकौ – वाणीे और विनायक (सरस्वती और गणेश को)


.............................................................




साधारण अर्थ: इस श्लोक में हम उन सभी गुणों की वंदना कर रहे हैं जो वर्णों के अर्थ और उनके समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों में समाहित हैं। हम उनके कर्ताओं की भी वंदना करते हैं, जो वाणी (ज्ञान) और विनायक (गणेश) के रूप में हमारे जीवन में मंगल लाते हैं।

.......................................
.......................................


भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥


शब्दार्थ

भवानी – माता पार्वती

शङ्करौ – भगवान शंकर (शिव)

वन्दे – मैं वन्दना करता हूँ, प्रणाम करता हूँ

श्रद्धा – भक्ति, निष्ठा, विश्वास का प्रारम्भिक रूप

विश्वास – दृढ़ आस्था, अटल भरोसा

रूपिणौ – स्वरूप वाले, जिनका रूप है

याभ्यां विना – जिनके बिना

न पश्यन्ति – नहीं देख पाते

सिद्धाः – सिद्ध पुरुष, योगी, ज्ञानवान

स्वान्तःस्थम् – अपने अंतःकरण (हृदय) में स्थित

ईश्वरम् – परमात्मा, भगवान



..........................................

साधारण अर्थ

मैं माता भवानी और भगवान शंकर को प्रणाम करता हूँ, जो श्रद्धा और विश्वास के रूप में प्रकट होते हैं। जिनके बिना सिद्ध पुरुष भी अपने हृदय में स्थित परमात्मा का दर्शन नहीं कर सकते। अर्थात् आत्मा के भीतर बसे ईश्वर को देखने और अनुभव करने के लिए श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है।

..............................................
..............................................

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम् ।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥



शब्दार्थ

वन्दे – मैं प्रणाम करता हूँ, नमन करता हूँ

बोधमयम् – ज्ञान स्वरूप, चेतना से युक्त

नित्यं – सदा, हर समय

गुरुम् – गुरु को, आचार्य को

शङ्कररूपिणम् – शंकर (भगवान शिव) के स्वरूप वाले

यम् आश्रितः – जिनका आश्रय लेकर, जिनसे सम्बद्ध होकर

हि – वास्तव में, निश्चय ही

वक्रः अपि – टेढ़ा होने पर भी, वक्र रूप में भी

चन्द्रः – चन्द्रमा

सर्वत्र – हर स्थान पर, सब जगह

वन्द्यते – वन्दना किया जाता है, आदर प्राप्त करता है



.............................................

साधारण अर्थ

मैं उस गुरु को प्रणाम करता हूँ, जो सदा ज्ञानमय और भगवान शंकर के स्वरूप वाले हैं। जैसे चन्द्रमा अपनी वक्रता के बावजूद शिवजी के मस्तक पर सुशोभित होकर सर्वत्र पूजनीय हो जाता है, वैसे ही जो शिष्य गुरु का आश्रय लेता है, वह भी सब ओर आदर और सम्मान प्राप्त करता है।


.............................................
.............................................

Hindi Poem by Shivam Kumar Pandey : 111996818
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now