सब कुछ अलग हो रहा है,
शायद कुछ गलत हो रहा है,
बचपन में देखे सपने बचपन मे ही छूट गये,
न जाने कब इस बढ़ती दुनिया के competition मे जुट गये,
रोज लगता है, सब आगे जा रहे हैं,
बस हम ही कुछ कर नहीं पा रहे है,
अब डर लगता है, अपनो से ही
पता नहीं क्यूं अपनो से ही नज़रें नहीं मिला पा रहे हैं,
बस रोज लगता है, अब नहीं होगा ...
पर , हार मान लेने से क्या सब ठीक होगा..??
silent Shivani 🖋️🖋️