तू था, या एक ख्वाब था,
साँसों में लिपटा, बेहिसाब था।
जिसे थामा, वो रेत निकला,
हर पल में एक हिसाब था।
तेरी बातों में बारिश थी,
मेरे लफ़्ज़ों में सूखा था।
तू चाँद की तरह चमका,
मैं अंधेरों में भूखा था।
वक़्त की चादर तानी थी,
पर यादें फिर भी जागीं थीं।
नींदों ने मुँह मोड़ा मुझसे,
तेरी आहट में जागीं थीं।
तू गया तो सब कुछ ठहरा,
जैसे दिल ने जीना छोड़ा।
सांसें चलती रहीं मगर,
हर धड़कन ने तुझको ओढ़ा।
अब तुझसे शिकवा कैसा है,
जो बीता, वो सपना था।
तू था, या एक ख्वाब था,
या फिर तू मेरा अपना था…