Hindi Quote in Poem by Anil Thakur

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मैं ही सब हूं



जब मैंने प्रकृति को देखा — पेड़, नदियाँ, आकाश, मिट्टी —
तो पहली बार महसूस हुआ कि मैं सिर्फ उसका हिस्सा नहीं हूं,
बल्कि मैं ही प्रकृति हूं।

जो कुछ बाहर है, वही सब मेरे भीतर भी है।
और उसी एहसास से ये कविता अपने-आप उतरती चली गई...





मैं मिट्टी भी हूं, मैं जल भी हूं —

मैं अग्नि की चिंगारी हूं।

मैं वायु के हल्के स्पर्श सा,

मैं शून्य की सवारी हूं।



मैं पर्वत की खामोशी में,

मैं ही नदियों का शोर हूं।

मैं सागर की गहराइयों में,

मैं ही पहली भोर हूं।



मैं प्रश्न हूं, मैं ही उत्तर,

मैं दीप हूं, मैं ही तम रूप हूं।

मैं प्यास हूं, मैं ही सरिता,

मैं शीतल छाया, मैं तपती धूप हूं।



मैं पतझड़ का मौसम भी,

मैं ही बसंत बहार हूं।

मैं ही अपनी सवारी हूं,

मैं ही उस पर सवार हूं।



मैं भीतर की भूख हूं,

मैं ही सात्विक आहार हूं।

मैं सूक्ष्म हूं, मैं ही विराट,

मैं ही सबका आकार हूं।



मैं चेतन हूं, मैं अचेतन,

मैं ही धर्म और विज्ञान हूं।

मैं संतुलन, मैं ही गति,

मैं ही सृष्टि का प्राण हूं।



मैं दृश्य हूं, मैं ही दृष्टा,

मैं ही विधि-विधान हूं।

मैं कर्म हूं, मैं ही फल,

मैं ही समय और स्थान हूं।



मैं क्रोध हूं, मैं ही करुणा,

मैं ही तो प्रेम विस्तार हूं।

मैं निश्चित हूं, मैं अनिश्चित,

मैं ही सबका आधार हूं।



मैं बंधन हूं, मैं ही मुक्ति,

अब मैं जीवन की धार हूं।

मैं जन्म हूं, मैं ही मृत्यु,

मैं ही तो समय के पार हूं।

- अनिल

Hindi Poem by Anil Thakur : 111990152
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