मैं और मेरे अह्सास
प्रीत तुमसे हुईं
जब से प्रीत तुमसे हुईं तब से तमन्ना जीने की हुईं l
बरसो बाद प्रफुल्लित रहने की आदत सीने की हुईं ll
आज महफिल भरी हुई है शराब और शबाब से तो l
आरज़ू ए निगाहों को हुस्न का शबाब पीने की हुईं ll
"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह