Hindi Quote in Story by Babul haq ansari

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रुखसार की आँखों में अब भी अजीब सी परछाइयाँ झलकती थीं। उस रात के बाद से वह सामान्य तो दिखती थी, मगर उसकी बातें बदल गई थीं। वह कभी-कभी बोलते-बोलते रुक जाती, जैसे कोई पुरानी आवाज़ उसके ज़हन में गूंज रही हो।

सलीम अब हर रात उसके साथ बैठता, चुपचाप बातें करता, उसकी आँखों में झाँकने की कोशिश करता — मगर कुछ था जो उसे अब भी छिपा रहा था। एक अधूरी कहानी… एक टूटा हुआ सपना… जैसे किसी और ज़िन्दगी का कोई हिस्सा उसके भीतर सांस ले रहा हो।

एक रात, जब बारिश की बूँदें छप्पर पर धीमे-धीमे पड़ रही थीं, रुखसार ने अचानक सलीम से पूछा,
“अगर मैं कहूँ कि मुझे किसी और वक़्त की बातें याद आती हैं… किसी और जन्म की?”

सलीम थोड़ी देर तक ख़ामोश रहा, फिर बोला,
“यादें अगर नींद से बाहर आने लगें, तो समझ लो कि कोई कहानी अधूरी रह गई है।”

रुखसार ने उसकी बात पर सिर्फ़ मुस्कराकर सिर झुका लिया। फिर धीमे से बोली,
“मैं उस हवेली में पहले भी गई हूँ, सलीम। बहुत पहले। मुझे वहाँ की दीवारें याद हैं… वहाँ की सीढ़ियाँ… और एक औरत की चीख़… जो बार-बार दोहराती थी — ‘वो वापस आएगा… वो वापस आएगा…’”

सलीम की रूह काँप उठी।

उसने उसी वक़्त तय किया — कि अब उसे सिर्फ़ रुखसार को देखना नहीं है,
बल्कि उस हवेली के रहस्य को भी जानना है।

अगली रात, चाँदनी साफ़ थी। दोनों हवेली की ओर गए। दरवाज़ा वैसे ही जंग खाया हुआ था। जैसे किसी ने सदियों से उसे खोला ही न हो। सलीम ने ज़ोर लगाकर खोला।

भीतर जाते ही, रुखसार की चाल फिर बदल गई — वही नींद जैसी, वही सपाट आँखें।

उसने पुरानी दीवार पर हाथ रखा… और वहाँ एक दबी हुई आकृति नज़र आई — एक औरत का चेहरा, जिसकी आँखें खुली थीं, और होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी।

“यही है वो…” रुखसार ने कहा।

सलीम ने डरते हुए पूछा, “कौन?”

रुखसार अब एकदम शांत थी।
उसने धीमे से कहा —
“वो… मैं हूँ।”

हवा जैसे ठहर गई हो।
सलीम साँस रोक कर खड़ा रह गया।

एक नई कहानी शुरू हो चुकी थी —
जिसका पहला जनम अधूरा था,
और दूसरा अभी लिखना बाक़ी था।

Hindi Story by Babul haq ansari : 111987415
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