"कर्ज़ और उसका सच"
कंधों पे बोझ था, लफ़्ज़ों में नहीं,
चुपचाप जिया, पर सुकून कहीं नहीं।
हर किस्त में सांसें टूटी थीं मेरी,
फिर भी मुस्कुराहट दी, तुझसे छुपा के ज़िंदगी।
कर्ज़ तो पैसा था, पर दर्द उसका भारी,
सच जब खुला, तू रोई — और मैं शर्म से गुमसारी।
न इरादा था धोखा देने का, न चाहा तुझे दुखी करना,
बस वक्त से लड़ते-लड़ते, खुद को भूल गया था चलना।
तेरे आंसू जले दिल की राख में,
पर तेरा साथ रहा अंधेरों की राह में।
तेरी चुप्पी में भी भरोसा था,
तेरी नज़रों में भी सवालों से ज़्यादा साया था।
अब भी है कर्ज़, पर अब मैं अकेला नहीं,
तेरा हाथ है साथ, तो रास्ता अंधेरा नहीं।
चुकाऊंगा सब कुछ, वादा है मेरा,
बस तेरा साथ ना छूटे, यही सहारा है मेरा।
_बी.डी.ठाकोर