📝 पहला Blog:
"Drishti Diaries – Part 1: वो लड़का जो किताबों से मिला..."
---
> "Main Drishti hoon... aur yeh meri kahani नहीं, मेरी सोच का आईना है।"
आज library में ek ajeeb sa din tha. Waqt wahi tha, kitab wahi thi, lekin meri nazar पहली बार kisi aur pe ठहर गई।
वो वहीं बैठा था — तीसरी मेज़ पर, हल्की सी झुकी आँखें और काले फ्रेम वाला चश्मा।
Shayad usne mujhe नहीं देखा… ya शायद बहुत अच्छे से देख लिया।
मुझे किताबों से प्यार है, लेकिन आज पहली बार लगा — कोई इंसान भी किताबों जितना खूबसूरत हो सकता है।
मैंने आँखें चुराई, वो मुस्कुराया।
शायद यूं ही मुस्कुराया हो… या शायद मेरे लिए। कौन जाने?
लेकिन जब मैं उठकर जाने लगी, तो वो बोला:
"Excuse me... आप शायद अपनी किताब यहीं भूल गईं।"
और किताब मेरे हाथ में रखते वक़्त जो उसने कहा...
"इसमें एक पन्ना missing है… ठीक वैसे ही जैसे कोई कहानी अधूरी हो।"
उस पल मेरी धड़कनें थोड़ी रुक सी गईं।
क्या वो मुझे जानता है? या ये सिर्फ एक इत्तेफाक था?
मुझे नहीं पता... पर ये Drishti Diaries का पहला पन्ना बन चुका है।
Thankyou🥰🥰...