"""" अहसास """"
वो घर जो था कभी जन्नत, अब वीरान हो गया,
बच्चों का दिल मां बाप से बेगाना हो गया।
जिनके लिए हर सुख बिछाया था आँगन में,
वो छोड़ गए सब खंडहर समझकर इस आंगन को।
कभी थी चहल-पहल, गूँजती थी हँसी,
अब सूनेपन का मातम बस्ता है यहां ।
काँपते हाथों में अब , ताकत बची नहीं,
जो थामे थे बच्चों को, वो हिम्मत अब नही रही ।
यादें चुभती हैं, जैसे काँटों का गुलदस्ता बनकर,
बच्चों की यादों का बस , बंवडर सा रहा।
क्या गलती थी, जो सजा ऐसी मिली हमें,
जुर्म क्या किया हमने ,पता तो चलता हमें
सजा दी हमे, हमारे जिस्म के हिस्सों ने
अहसास रहेगा जिंदगी भर हमें।
सर्द रातों में ठिठुरते हैं उनकी यादों मै,
कभी जो छाँव थी, वो आसरा खो गया।
दुनिया की आंखों ने देखा, मगर बोलें नहीं,
बूढ़ों के दर्द का अब कोई मोल ना रहा।
खामोशी ने घेर लिया है दिल का हर कोना कोना,
अब हँसी का कोई नक्शा बाकी ना रहा।
कभी सपनों में बसते थे बच्चे हमारे,
वो सारे ख्वाब अब मिट्टी में मिल गए।
दर-दर भटकते हैं, ढूंढती है उनको हमारी नज़रे ,
पर हर तरफ उनके अक्स का बुलबुला सा मिला।
जिस्म थक गया, साँसें बोझ बन गई अब,
जिंदगी का हर रंग अब धुंधला सा गया।
काश! वो पल लौटें, जब प्यार का आंगन था ये घरौंदा ।
अब तो बस मायूसी का साया बस्ता है यहां ।
रोता है दिल आँसू थमते नहीं अब,
इस मायूसी में अब जीने का सबब ना रहा।
कभी तो सुन ले कोई पुकार इन साँसों की,
वरना ये जिंदगी अब मिट्टी में खो जायेगी।
ढूंढते रहोगे जब हम ना रहेंगे,
कब्रों मै जा कर वापिस नहीं आता कोई ।
मिलने की उम्मीद भी अब धुंधली सी पड़ी जाती सुहेल।
हर उम्मीद का दीया ,जैसे बुझता सा जा रहा ।
लेखक ! सुहेल अंसारी(सनम)
Email-suhail.ansari2030@gmail.com