ऐ इंसान, जरा सोच तू.....
आज यहां कोलकाता में बहुत शोरगुल है, ट्रैफ़िक रुकी पड़ी है;
लोगों को मानो घर कैद हो गई है, असुविधा बहुत बढ़ी है
देश का वक़्त, और अपना, हर एक का वक़्त, बर्बाद हो रहा है
यह तकलीफ, यह मजबूरी बिचारा आम आदमी चुपचाप सह रहा है
एक मेहनती आम इंसान को, जीवन भर बहुत सहना पड़ता है
उसे अपने ही देश में, क्यूँ इस कदर बेबसी में रहना पड़ता है ?
कोई तो बताये, इन हवाओ में प्रेम की खुशबु कब लहराएगी ?
माँ, तू कब, अखिर कब, सुकून और शांति इस धरा पर फैलाएगी ?
Armin Dutia Motashaw