मेरे दिल की बगिया उजड़ गयी ,
लुट गयी अरमानो की डाली।
चेहरे का नूर भी फिका पढ़ गया ,
हल्की पढ़ गयी होठों की लाली।।
इस वियोग को कैसे झेलू मैं,
तू किसी और की हो गयी कैसे सह लूँ मैं।।
क्या कमी रह गयी थी मेरे प्यार में,
मुझे तो रब दिखता था तेरे दीदार में।।
कैसे बताऊ माँ को कि तू छोड़ गयी
कैसे समझाऊ ख़ुद को की तू मुह मोड़ गयी।।
विश्वास उठ गया अब इश्क से मेरा,
खानाबदोश बनकर रह गया ये आशिक तेरा।।
भले ही बदनाम हो जाए इश्क मेरा इस संसार में,
ताउम्र अकेला रहूँगा तेरे इंतजार में।।